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________________ * ५२७. (प्र.) समवतार क्या है ? (उ.) समवतार के छह प्रकार हैं, जैसे-(१) नामसमवतार, (२) स्थापनासमवतार, (३) द्रव्यसमवतार, (४) क्षेत्रसमवतार, (५) कालसमवतार, और (६) भावसमवतार। विवेचन-समवतार का अर्थ है अन्तर्भाव। लघु का बृहत् मे समावेश या नियोजन करना समवतार कहलाता है। वह समवतार तीन प्रकार का है (१) आत्मसमवतार-निश्चयनय के अनुसार जीव द्रव्य जीवभाव के अतिरिक्त कहीं नहीं रहता है। इसलिए इसका समवतार जीवभाव मे ही होता है। यदि जीव का अजीव में समवतार हो तो स्वभाव परित्याग के कारण वह अवास्तविक हो जायेगा। (२) परसमवतार-व्यवहारनय की दृष्टि अनुसार प्रत्येक द्रव्य परभाव मे (पराश्रित) भी रहता है और स्वभाव से (स्वाश्रित) तो रहता ही है। जैसे -कुण्डे बदराणि-कुण्डे में बेर। यद्यपि बेर अपने स्वभाव मे स्थित है फिर भी कुण्ड में आधेय के रूप मे भी रहता है। (३) तदुभयसमवतार-निश्चयनय से द्रव्य स्वभाव मे और व्यवहारनय से परभाव में भी रहता है। इसे तदुभयसमवतार कहा है। जैसे-गृहे स्तंभः-घर में स्तंभ। स्तम्भ गृह का ही एक अंश है इसलिए उसका समवतार गृह में भी होता है और आत्मभाव में तो है ही। वैकल्पिक रूप मे समवतार के दो ही प्रकार बतलाए गये हैं-(१) आत्मसमवतार, तथा (२) तदुभयसमवतार। आत्मभाव में समवतार हुए बिना परभाव में समवतार नही हो सकता। तात्पर्य यह है कि जब यह विचार किया जाता है कि प्रत्येक द्रव्य कहाँ रहता है? तब इस प्रश्न का उत्तर निश्चय और व्यवहार इन दो नयों की दृष्टि से दिया जाता है। जब निश्चयनय का आश्रय लेकर सोचा जाता है, तब इस प्रश्न का उत्तर होता है-प्रत्येक द्रव्य अपने आत्मभाव-स्व-स्वरूप में ही रहता है। जब व्यवहारनय की दृष्टि से इस प्रश्न का उत्तर सोचा जाता है, तब उसका अभिप्राय यह निकलता है कि जिस प्रकार कुण्ड में बदरीफल (बेर) रहते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य पराश्रित (परभाव में) भी रहता है और स्वाश्रित (आत्मभाव मे) तो रहता ही है। दीवार, देहली, पट्ट, स्तम्भ आदि संघात रूप घर में (परभाव में) भी रहता है और आत्मभाव में भी। SAMAVATAR 527. (Q.) What is this Samavatar (assimilation) ? ____ (Ans.) Samavatar (assimilation) is of six types-(1) Naam Samavatar (name assimilation), (2) Sthapana Samavatar (assimilation as notional installation), (3) Dravya Samavatar (physical assimilation), (4) Kshetra Samavatar (areaassimilation), (5) Kaal Samavatar (time-assimilation), and (6) Bhaava Samavatar (essence-assimilation). * सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२ (396) Illustrated Anuyogadvar Sutra-2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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