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________________ ५०६. से किं तं अणंताणतए ? अणंताणंतए दुविहे पण्णत्ते। तं जहा-जहण्णए य अजहण्णमणुक्कोसए य। ५०६. (प्र.) अनन्तानन्त क्या है ? (उ.) अनन्तानन्त के दो प्रकार हैं। यथा-(१) जघन्य अनन्तानन्त, और (२) अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) अनन्तानन्त। विवेचन-उक्त प्रश्नोत्तरो में गणना संख्या के सख्यात, असख्यात और अनन्त ये तीन मुख्य भेद बताकर तीन मुख्य भेदों के अवान्तर बीस भेद-प्रभेदो का निरूपण है। संख्यात के तो जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ये तीन अवान्तर भेद है। लेकिन असंख्यात और अनन्त के मुख्य तीन अवान्तर भेदो के नामो मे परीत और युक्त तो समान है किन्तु तीसरे भेद का नाम असंख्यातासंख्यात और अनन्तानन्त है। अनन्तानन्त में उत्कृष्ट अनन्तानन्त असम्भव होने से यह भेद नही बनता है। अतएव अनन्त के आठ ही भेद होते है। उक्त कथन की संक्षिप्त तालिका इस प्रकार बनती है (१) त्रिविध संख्यात १ जघन्य - २. मध्यम ३ उत्कृष्ट (दो की संख्या) (तीन से लेकर उत्कृष्ट संख्यात से एक कम) (इसके चार भेद आगे सूत्र ५०८ मे बताये हैं) (२) नवविध असंख्यात १. परीतासंख्यात २ युक्तासंख्यात ३ असंख्यातासंख्यात १. जघन्य २ मध्यम ३. उत्कृष्ट ४. जघन्य ५. मध्यम ६. उत्कृष्ट ७. जघन्य ८ मध्यम ९. उत्कृष्ट (३) अष्टविध अनन्त १. परीतानन्त २ युक्तानन्त ३. अनन्तानन्त १. जघन्य २. मध्यम ३. उत्कृष्ट सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२ ४. जघन्य ५. मध्यम ६. उत्कृष्ट ७. जघन्य ८. मध्यम (368) Illustrated Anuyogadvar Sutra-2 * * * * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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