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________________ " * सातो नय ज्ञानात्मक है। ज्ञान जीव का गुण है। इसलिए इनका अन्तर्भाव गुणप्रमाण मे भी हो सकता है। किन्तु वहाँ ज्ञान के भेदो मे प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणो की चर्चा है। 'नयप्रमाण' इनसे भिन्न रूप में प्रसिद्ध है, इसलिए इनको जीव-गुणप्रमाण से पृथक् नयप्रमाण के रूप मे बताया गया है। तीनों दृष्टान्तों का तात्पर्यार्थ द्रव्य और वस्तु की विचारणा के अनेक मार्ग है। वह विचारणा कभी स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्मतर तथा कभी अशुद्ध, शुद्ध और शुद्धतर होती है। द्रव्य के अनेक पर्याय है। स्थूल विचार के द्वारा स्थूल पर्याय, सूक्ष्म विचार के द्वारा सूक्ष्म पर्याय और सूक्ष्मतर विचार के द्वारा सूक्ष्मतर पर्याय का ग्रहण होता है। स्थूल विचार को सापेक्ष दृष्टि से अशुद्ध, सूक्ष्म विचार को सापेक्ष दृष्टि से शुद्ध और सूक्ष्मतर विचार को सापेक्ष दृष्टि से शुद्धतर कहा जाता है। नैगमनय की दृष्टि मे प्रस्थक का सकलन भी प्रस्थक है, प्रस्थक का निर्माण भी प्रस्थक है किन्तु तीन शब्दनयों की दृष्टि मे प्रस्थक कोई काष्ठ पात्र नहीं है, वह प्रस्थक का ज्ञान और उपयोग है। इस दृष्टान्त का तात्पर्य है कि ज्ञेय एक अवस्था मे ज्ञाता से भिन्न होता है और एक अवस्था मे ज्ञाता से अभिन्न हो जाता है। इस अनेकान्तात्मक दृष्टि से ही वस्तु को समग्र दृष्टिकोणो से जाना जा सकता है। ____ वसति दृष्टान्त के द्वारा आधार और आधेय की मीमासा की गई है। शब्दनयत्रयी के अनुसार सब द्रव्य निरालम्ब अथवा स्वप्रतिष्ठ होते है। किसी द्रव्य के लिए आधार आवश्यक नहीं होता। नैगमनय दृष्टि मे आधार और आधेय का सम्बन्ध आवश्यक है। इसीलिए आधारभूमि के अनेक विकल्प किये गये है। प्रदेशदृष्टान्त मे अवयव और अवयवी के सम्बन्ध की मीमासा की गई है। एवभूतनय द्रव्य के अवयवो को अस्वीकार करता है। नैगमनय अवयव और अवयवी के सम्बन्ध को मान्य करता है। ___ इस प्रकार नय वस्तु के विभिन्न धर्मो और विभिन्न नियमो को सापेक्ष दृष्टि से जानने की प्रक्रिया है। (साभार अनु आचार्य महाप्रज्ञ जी, पृ. ३२३-३२४) ॥नयप्रमाणपद प्रकरण समाप्त ॥ PRADESH DRISTANT ___476. (Q.) What is this Pradesh drustant (example of spacepoint)? (Ans.) Pradesh dristant (example of space-point) is Naigam naya (co-ordinated viewpoint) says-"Pradesh (spacepoint) is of six entities—(1) Pradesh (space-point) of Dharmastikaya (motion entity), (2) Pradesh. (space-point) of Adharmastukaya (rest entity), (3) Pradesh (space-point) of Akashastikaya (space entity), (4) Pradesh. (space-point) of Jivastikaya (life entity), (5) Pradesh (space-point) of Skandha (an नयप्रमाण-प्रकरण (333) The Discussion on Naya Pramana Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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