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________________ ___ “क्योंकि यहाँ (धम्मे पएसे आदि में) तत्पुरुष और कर्मधारय यह दो समास होते हैं। इसलिए संदेह होता है कि उक्त दोनों समासों में से तुम किस समास की दृष्टि से 'धर्मप्रदेश' आदि कह रहे हो? यदि तत्पुरुष समासदृष्टि से कहते हो तो ऐसा मत कहो और यदि कर्मधारय समास की अपेक्षा कहते हो तब विशेषण सहित कहना चाहिए-धर्म और उसका जो प्रदेश है (उसका समस्त धर्मास्तिकाय के साथ समानाधिकर हो जाने से), वही प्रदेश धर्मास्तिकाय है। इसी प्रकार अधर्म और उसका जो प्रदेश है, वही प्रदेश अधर्मास्तिकाय रूप है; आकाश और उसका जो प्रदेश है, वही प्रदेश आकाशास्तिकाय है; एक जीव और उसका जो प्रदेश है, वही प्रदेश नोजीवास्तिकाय है तथा स्कन्ध और उसका जो प्रदेश है, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है। समभिरूढ़नय के ऐसा कहने पर एवंभूतनय कहता है-“(धर्मास्तिकाय आदि के विषय में) जो कुछ भी तुम कहते हो वह समीचीन नहीं। मेरे मत से वे सब कृत्स्न (देश-प्रदेश की कल्पना से रहित) हैं, प्रतिपूर्ण और निरवशेष (अवयवरहित) हैं, एक ग्रहणगृहीत हैं-एक नाम से ग्रहण किये गये हैं। अतः देश भी अवास्तविक है एवं प्रदेश भी Hot अवास्तविक है।" ___यही प्रदेशदृष्टान्त है। इस प्रकार नयप्रमाण का वर्णन पूर्ण हुआ। विवेचन-प्रदेशदृष्टान्त-द्रव्य के साथ जुडा (सलग्न) हुआ कल्पित भाग देश तथा उसका अत्यन्त सूक्ष्म भाग प्रदेश कहलाता है। निरश देश, निर्विभागी भाग, अविभागी परिच्छेद ये प्रदेश के पर्यायवाची शब्द है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश और एक जीव ये चारो अखण्ड द्रव्य है। देश उसका कल्पित भाग है तथा प्रदेश उसका परमाणु जितना भाग है। प्रदेशदृष्टान्त में सातो नयो का अभिमत इस " प्रकार है (१) नैगमनय नैगमनय सामान्य और विशेष दोनो को मान्य करता है इसलिए धर्मास्तिकाय आदि छहो के प्रदेश को स्वीकृत करता है। (२) संग्रहनय सग्रहनय के अनुसार देश कोई स्वतन्त्र द्रव्य नही है इसलिए वह 'देश का प्रदेश' इस विकल्प को स्वीकार नहीं करता। धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यो से सम्बन्धित देश का जो प्रदेश है वह उन द्रव्यो का ही प्रदेश है क्योकि वह देश उससे भिन्न नही है। इसलिए छहो का प्रदेश नहीं होता, पाँचो का होता है। 'पाँचो का प्रदेश' यह सग्रहनय की स्वीकृति है। नयप्रमाण-प्रकरण (331) The Discussion on Naya Pramana Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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