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________________ Ma d sense organ of seeing), (3) Ghranendriya Pratyaksh (perceptual cognition through the sense organ of smell), (4) Jihvendriya Pratyaksh (perceptual cognition through the sense organ of taste), and (5) Sparshanendriya Pratyaksh (perceptual cognition through the sense organ of touch). This concludes the description of Indriya Pratyaksh (perceptual cognition through sense organs). ४३९. से किं तं णोइंदियपच्चक्खे। णोइंदियपच्चक्खे तिविहे प.। तं.-ओहिणाणपच्चक्खे, मणपज्जवणाणपच्चक्खे, केवलणाणपच्चक्खे। से तं णोइंदियपच्चरखे। से तं पच्चक्खे। ४३९. (प्र.) नोइन्द्रियप्रत्यक्ष क्या है ? (उ.) नोइन्द्रियप्रत्यक्ष तीन प्रकार का है-(१) अवधिज्ञानप्रत्यक्ष, (२) मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्ष, तथा (३) केवलज्ञानप्रत्यक्ष। यही प्रत्यक्ष का स्वरूप है। _ विवेचन-दार्शनिक साहित्य मे ज्ञान और प्रमाण की चर्चा बहुत विस्तार के साथ हुई है। जैन दार्शनिको ने भी इस विषय मे अपने ग्रन्थो मे बहुत विस्तृत चर्चाएं की हैं। भगवती, स्थानाग, नन्दी और * अनुयोगद्वारसूत्र मे भी इस विषय की चर्चा है। इस चर्चा को विस्तारपूर्वक समझने के लिए अनुयोगद्वार ज्ञान मुनि जी कृत हिन्दी टीका, भाग २, पृष्ठ ७७५ से ८०० तक का अनुशीलन करना चाहिए। यहाँ * पर सक्षेप मे ही इसकी व्याख्या की गई है प्रत्यक्ष मे प्रति + अक्ष दो शब्द है। ‘अक्ष' का अर्थ है--जीव/आत्मा। जीव का गुण है ज्ञान। ज्ञान से वह समस्त पदार्थो को जानता है। जो ज्ञान साक्षात् आत्मा से उत्पन्न हो, जिसमें इन्द्रियादि किसी माध्यम की अपेक्षा न हो, वह प्रत्यक्ष कहलाता है। प्रत्यक्ष के दो भेद है-(१) इन्द्रियप्रत्यक्ष, और (२) नोइन्द्रियप्रत्यक्ष। जिस प्रत्यक्ष ज्ञान की उत्पत्ति 8 में इन्द्रियाँ सहयोगी हो वह इन्द्रियप्रत्यक्ष है और जिस ज्ञान की उत्पत्ति इन्द्रिय आदि की सहायता के बिना ही होती है, उसे नोइन्द्रियप्रत्यक्ष कहते है। इन्द्रियो से होने वाले ज्ञान को लौकिक व्यवहार की अपेक्षा से प्रत्यक्ष कहा गया है, निश्चयनय की अपेक्षा तो इन्द्रियजन्य ज्ञान परोक्ष ही है। नव्य न्यायदर्शन मे इसे लौकिकप्रत्यक्ष और अलौकिकप्रत्यक्ष * कहा है। इन्द्रियप्रत्यक्ष के पाँच भेद श्रोत्र आदि पाँचो इन्द्रियो द्वारा ग्रहण किये जाने वाले अपने-अपने * विषयो की अपेक्षा से है। ___ नोइन्द्रियप्रत्यक्ष के जो तीन भेद है इनकी उत्पत्ति केवल आत्माधीन है। इनमे इन्द्रियो का उपयोग * सर्वथा नहीं होता है किन्तु आत्मा अपनी ज्ञान शक्ति द्वारा ही विषय को जानता है। ded disease addestalesediesentencessional ॐ सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२ (276) Illustrated Anuyogadvar Sutra-2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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