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________________ இமை a ३७०. (प्र.) उद्धारपल्योपम किसे कहते हैं ? (उ.) उद्धारपल्योपम के दो प्रकार हैं, यथा-सूक्ष्म उद्धारपल्योपम और व्यावहारिक उद्धारपल्योपम। विवेचन-इन सूत्रो मे औपम्यकाल के जो भेद किये है वे निम्न तालिका से स्पष्ट समझे जा सकते है औपम्यकाल-(१) पल्योपम, (२) सागरोपम (१) पल्योपम-(१) उद्धारपल्योपम-(क) सूक्ष्म, और (ख) व्यवहार (२) अद्धापल्योपम-(क) सूक्ष्म, और (ख) व्यवहार (३) क्षेत्रपल्योपम-(क) सूक्ष्म, और (ख) व्यवहार चूर्णिकार ने तीनो की व्याख्या निम्न प्रकार की है (१) जिस काल में बालाग्र अथवा बालखण्डो का एक समय मे एक की गति से उद्धार (अपहरण) किया जाता है, वह उद्धारपल्योपम कहलाता है। (सूत्र ३७२) (२) जिस काल मे सौ वर्ष मे एक बालाग्र या बालखण्ड की गति से उद्धार किया जाता है, वह अद्धापल्योपम कहलाता है। (सूत्र ३७८) (३) जो कालखण्ड आकाश-प्रदेशो के (क्षेत्र) अवहार (निकालने) से मापा जाता है, उसे क्षेत्रपल्योपम कहा जाता है। (सूत्र ३८४) (क) जिसमे एक-एक बालाग्र के असख्यात सूक्ष्म खण्ड करने की कल्पना की जाती है और एक-एक खण्ड समय-समय पर निकाला जाता है, वह सूक्ष्म उद्धारपल्योपम होता है। (ख) जिसमें स्थूल बालाग्र जैसे थे वैसे ही उनका अवहरण किया जाता है, वह व्यावहारिक उद्धारपल्योपम होता है। (अनु. चूर्णि तथा वृत्ति, पत्र १८२) इनमे से व्यावहारिक उद्धारपल्योपम तथा सागरोपम व्यावहारिक अद्धापल्योपम-सागरोपम का कोई प्रयोजन नही है। सूक्ष्म उद्धारपल्योपम तथा सागरोपम से द्वीप समुद्रो का प्रमाण बताया जाता है तथा सूक्ष्म अद्धापल्योपम तथा सागरोपम से देव, नारक आदि चार गतियो के जीवो की आयु को भान किया जाता है। ___पल्योपम से दस कोटाकोटि गुणा अधिक अर्थात् दस कोटाकोटि प्रमाण पल्य जब खाली हो जाये तब एक सागरोपम होता है। अगले सूत्रो की व्याख्या मे चूर्णिकार ने बालाग्र का प्रतिपादन दो दृष्टियो से किया है (१) विषय-वस्तु की दृष्टि से-एक स्वस्थ मनुष्य अपनी आँखो से किसी पौद्गलिक वस्तु को देखता है, उसमे असंख्येय भाग जितना बालाग्र होता है। * कालप्रमाण-प्रकरण (159) The Discussion on Kaal Pramana Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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