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________________ ३६६. (प्र.) वह समय का स्वरूप क्या है ? (उ.) मै समय की प्ररूपणा करूँगा जैसे-कोई तुन्नवाय (रफूगर जुलाहा या दर्जी) का पुत्र है। वह तरुण, बलवान्, युगवान (तीसरे-चौथे आरे में जन्मा हुआ) युवा, स्वस्थ और सधे हुए हाथों वाला है, उसके हाथपॉव, पार्श्व, पृष्ठान्तर (पसली) और उरु (जंघाएँ) सुदृढ और विकसित हैं। सम श्रेणी में स्थित दो ताल वृक्ष और परिघा (कपाट की अर्गला) के समान (सुदृढ) जिसकी भुजाएँ हैं। चर्मेष्टक (व्यायाम करने का चमडे का उपकरण), पाषाण, मुद्गर और मुट्ठी के व्यायामों से जिसके शरीर के पुढे आदि सुदृढ हैं। जो आन्तरिक उत्साह बल से युक्त है। लंघन (उछलनाa Long jump), प्लवन (कूदना-हाई जम्प), धावन (दौडना) और व्यायाम करने में समर्थ है, छेक (प्रयोग की विधि जानने वाला), दक्ष (शीघ्र काम करने वाला), प्राप्तार्थ (प्रवीण), कुशल, मेधावी, निपुण और सूक्ष्म (प्रयोग को जानने वाला) शिल्प कला में निष्णात है। वह युवा एक बडी पटशाटिका (सूती साडी) अथवा पट्टशाटिका (रेशमी साडी या रेशमी वस्त्र) को लेकर अति शीघ्र एक हाथ प्रमाण जितना वस्त्र फाड़ डालता है। यहाँ प्रेरक (शिष्य) ने प्रज्ञायक (गुरु) से इस प्रकार पूछाजितने समय में उस तुन्नवाय पुत्र ने शीघ्र ही उस पटशाटिका या पट्टशाटिका को एक हाथ फाड डाला, क्या उतने काल को एक समय कहा जाता है ? (गुरु) ऐसा नहीं होता। (शिष्य) क्यों नही होता? (गुरु) क्योकि सख्येय (अनेकानेक) तन्तुओं के समुदय, समिति (मिलन) और समागम से एक पटशाटिका तैयार होती है। उस शाटिका के ऊपर वाले तन्तु के छिन्न हुए बिना नीचे वाला तन्तु छिन्न नहीं होता, ऊपर का तन्तु दूसरे समय में छिन्न होता है और नीचे का दूसरे (भिन्न) समय में, इसलिए एक हाथ शाटिका फटने का काल 'समय' नही होता। प्रज्ञापक (गुरु) के ऐसा कहने पर प्रेरक (शिष्य) ने इस प्रकार कहाजितने समय में उस तुन्नवाय पुत्र ने उस पटशाटिका या पट्टशाटिका के ऊपर वाले तन्तु का छेदन किया, क्या वह उतना काल समय होता है ? (गुरु) नहीं होता। (गुरु) क्यों? सचित्र अनुयोगद्वार सूत्र-२ (160) Illustrated Anuyogadvar Sutra-2 FROVAOr * SAT NA Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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