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________________ सव्वत्थोवे सेढिअंगुले, पयरंगुले असंखेज्जगुणे घणंगुले असंखेज्जगुणे । से तं पमाणंगुले । से तं विभागनिप्फन्ने। से तं खेत्तप्पमाणे । ॥ अवगाह त्ति पयं सम्मत्तं ॥ ३६२. (प्र.) इन श्रेणी अंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? ( उ . ) श्रेणी अंगुल सबसे छोटा - अल्प है, उससे प्रतरांगुल असंख्यात गुणा है और प्रतरांगुल से घनागुल असख्यात गुणा है। विवेचन - प्रस्तुत मे 'असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ सेढी' पद का यह आशय है कि प्रमाणांल निष्पन्न योजन की असख्यात कोडाकोडी सवर्तित योजनों की एक श्रेणी होती है । एक करोड को एक करोड़ से गुणा करने पर प्राप्त संख्या को कोडाकोडी कहते हैं। यद्यपि सूत्र मेघनाल के स्वरूप का सकेत नहीं किया है लेकिन यह पहले बताया जा चुका है कि घनागुल से किसी भी वस्तु की लम्बाई, चौडाई और मोटाई का परिमाण जाना जाता है। अतएव यहाँ घनीकृत लोक के उदाहरण द्वारा घनागुल का स्वरूप स्पष्ट किया है। लोक का वर्णन इस प्रकार है- समग्र लोक ऊपर से नीचे तक चौदह रज्जु प्रमाण है। उसका विस्तार नीचे सात रज्जु, मध्य मे एक रज्जु, ब्रह्मलोक नामक पाँचवे देवलोक तक का मध्य भाग में पाँच रज्जु और शिरो भाग मे एक रज्जु है । यही शिरो भाग लोक का अन्त है । अधोलोक का विस्तार ऊपर-प्रथम नरक एक रज्जु प्रमाण है, नीचे विस्तृत होता हुआ सप्तम नरक का विस्तार सात रज्जु प्रमाण हो गया है। इस प्रकार की लम्बाई, चौडाई प्रमाण वाले लोक की आकृति दोनों हाथ कमर पर रखकर नाचते हुए पुरुष के समान है । इसीलिए लोक को पुरुषाकार सस्थान से सस्थित कहा है। इस लोक के ठीक मध्य भाग मे एक रज्जु चौडा और चौदह रज्जु ऊँचा क्षेत्र त्रस - नाडी कहलाता है। इसे त्रस - नाडी कहने का कारण यह है कि द्वीन्द्रिय से लेकर पचेन्द्रिय तक के त्रस - सज्ञक जीवो का यही वास-स्थान है। घनागुल से लोक की आकृति विषयक चर्चा एव विभिन्न गणितिक विवेचनो के लिए देखे अनुयोगद्वार, आचार्य महाप्रज्ञ जी, पृ. २४५ - २४८, लोक प्रकाश, सर्ग १२ मे भी लोक सम्बधी विस्तृत वर्णन है ।, द्रव्यप्रमाण और क्षेत्रप्रमाण का निरूपण समाप्त हुआ । || अवगाहनापद प्रकरण समाप्त ॥ 362. (Q.) Bhante ! Which of these three, Shreni - angul (seriesangul), Pratarangul (square series-angul) and Ghanangul (cubic series-angul), is relatively less, more, equal or much more ? अवगाहना-प्रकरण Jain Education International (145) For Private Personal Use Only The Discussion on Avagahana www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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