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________________ * (घ) पज्जत्तगसम्मुच्छिमचउप्पयथलयराणं पुच्छा, गो. ! जह. अंगु. असं., उक्को. गाउयपुहत्तं। (च) गन्भवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, गो. ! जह. अंगु. असं., उक्को. छ गाउयाई। (छ) अपज्जत्तगभवक्कंतियचउप्पयथलयरपंचेंदियाणं पुच्छा, गो. ! जह. अंगु. असं., उक्को. अंगु. असं.। (ज) पज्जत्तयाणं जह. अंगु. असं., उक्को. छ गाउयाई। (३) (क) (प्र.) भगवन् ! चतुष्पदस्थलचरपचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना के विषय मे क्या जिज्ञासा है? (उ.) गौतम ! सामान्य रूप में उनकी जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट छह गव्यूत है। (ख) (प्र.) समूर्छिम चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यचयोनिकों की अवगाहना कितनी है ? (उ.) गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गव्यूतपृथक्त्व (दो से लेकर नौ गाऊ जितनी है। (ग) (प्र.) भगवन् ! अपर्याप्त संमूर्छिम चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना कितनी है? (उ.) गौतम ! उनकी जघन्य एवं उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग होती है। (घ) (प्र.) भगवन् ! पर्याप्त संमूर्छिम चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यचयोनिको की कितनी शरीरावगाहना है? ___ (उ.) गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट गव्यूतपृथक्त्व (दो से नौ गाऊ तक) है। (च) (प्र.) भगवन् ! गर्भव्युत्क्रान्तिक चतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिको की कितनी अवगाहना है ? (उ.) गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग और उत्कृष्ट छह गव्यूत प्रमाण शरीरावगाहना है। अवगाहना-प्रकरण (113) The Discussion on Avagahana Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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