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________________ . . . . ..... .NA SCOTATOON KOTATODA ___ ताइकेन हानाकी अनुयोगदाराई नामक अग्रेजी अनुवाद का उपयोग विशेष कर अग्रेजी शब्दावली स्थिर करने के समय किया गया है। इन सबके अतिरिक्त अभी सद्य प्रकाशित 'अनुयोगद्वारसूत्रम्' चूर्णि-विवृत्ति-वृत्ति विभूषितम् (भाग १, २) आगमो के गम्भीर अन्वेषक-अध्येता तत्त्वमर्मज्ञ मुनिराज जम्बू विजय जी महाराज द्वारा अत्यन्त श्रमपूर्वक सशोधित-सपादित ग्रन्थ हमे इस सम्पादन में मूल पाठ संशोधन व चूर्णि-टीका आदि के मूल सन्दर्भ देखने मे बहुत ही सहायक बना है। अनेक दुरूह स्थलों को समझने के लिए सह-सम्पादक श्रीचन्द सुराना 'सरस' ने मुनिश्री से व्यक्तिगत सम्पर्क कर इस विषय में समाधान प्राप्त करने का भी प्रयास किया है। मुनिश्री स्वय ज्ञानाभ्यासी व उदार हृदय है। उन्होने अत्यन्त प्रेम व वात्सल्यपूर्वक सूत्र के गम्भीर अर्था का स्पष्टीकरण कर संतुष्ट किया है। हम आपके विशेष आभारी है। साथ ही उक्त सभी विद्वानो, मुनिवरो के प्रति कृतज्ञ है कि इस विवेचन मे हम उनके अत्यधिक श्रमपूर्ण सम्पादन से लाभान्वित हुए हैं। ___ अपना पार्थिव शरीर त्याग देने के पश्चात् भी परम पूज्य गुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्मचन्द जी महाराज का वरदहस्त मेरी प्रत्येक गतिविधि को निर्देशित करता है। उनके प्रति आभार प्रकट करना मेरा विनम्र कर्तव्य है। इस सूत्रं के सम्पादन मे श्रीचन्द सुराना 'सरस' ने प्रशंसनीय योगदान दिया है तथा कठिन परिश्रम किया है। अग्रेजी अनुवाद मे श्री सुरेन्द्र बोथरा ने इस ग्रन्थमाला के अनेक आगमों के अनुवाद से परिपक्व अनुभव तथा ज्ञान का इसके अंग्रेजी अनुवाद मे सराहनीय उपयोग किया है। पारिभाषिक शब्दो के लिए अग्रेजी में उपयुक्त शब्दो तथा पदो के चयन में पूरी सावधानी रखी गयी है। फिर भी, यह अभी तक एक विकासशील क्षेत्र है। अतः भाषा तथा विवेचन की किसी भी भूल के लिए पाठकों का धैर्य अपेक्षित है। सुश्रावक श्री राजकुमार जी जैन जो आगमों के अध्येता तथा अग्रेजी के विद्वान् हैं, ने भी अन्तिम प्रूफ पढकर सपादकीय तथा अनुवादकीय सुझाव के रूप मे महत्त्वपूर्ण सेवा-सहयोग प्रदान किया है। लगभग दो वर्ष के कठोर व सतत परिश्रम पश्चात् यह अनुवाद और अंग्रेजी भाषान्तर तैयार हुआ है। फिर भी कहीं शास्त्र विरुद्ध, परम्परा विरुद्ध कुछ लिखा गया है, तो उसके लिए मै आत्म-साक्षी से पुनः 'मिच्छामि दुक्कडं' लेता हूँ तथा विद्वानो से निवेदन करता हूँ कि वे उचित संशोधन आदि सुझाने की कृपा करे। ___ अनुयोगद्वार के चित्र बनाना भी अन्य आगमो की अपेक्षा कुछ जटिल काम था। विषय को अच्छी प्रकार उदाहरणो द्वारा समझाने मे कुछ उदाहरण टीका, भाष्य के तथा अन्य सूत्रो की टीका व अर्थ ग्रन्थ से भी लेने पडे है तथा कुछ लौकिक प्रचलित उदाहरणो का भी प्रयोग किया गया है ताकि सूत्र का भाव पाठक/दर्शक अच्छी प्रकार समझ सके, फिर भी यदि उन उदाहरणो मे कहीं दोष रहा हो तो विशेषज्ञ सूचित करें। सभी सहभागी बन्धुओ के प्रति पुनः हार्दिक अनुमोदना। -उपप्रर्तक अमर मुनि - (14) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007656
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages627
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size21 MB
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