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संकलनकर्ता का नाम और समय ___ जैन आगमो मे अनुयोगद्वारसूत्र और नन्दीसूत्र सबसे अर्वाचीन शास्त्र है। ____ अनुयोगद्वारसूत्र किसकी रचना है यह प्रश्न आज तक पूर्ण रूप मे समाधान नही पा सका है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि आर्य वज्रस्वामी तक तो शास्त्रो का अध्ययन अपृथक्त्वानुयोग पद्धति से ही होता था। किन्तु उनके पट्टधर आर्य रक्षित सूरि जो भगवान महावीर के बीसवें पट्टधर थे। (वि. नि. ५७० से ५९७) ने आगम अभ्यासियों की मति-दुर्बलता, धारणा शक्ति की दुर्बलता को समझकर आगमो का चार अनुयोगो में वर्गीकरण किया। इसलिए उन्हे अनुयोग पृथक्कर्ता माना जाता है। परन्तु अनुयोगद्वारसूत्र के रचनाकार भी वे थे या नही, इस विषय में कोई पुष्ट प्रमाण नहीं है किन्तु साथ ही इसका बाधक प्रमाण भी कुछ नही है। इस कारण विद्वानों व इतिहास गवेषको ने अनुयोग पृथक् आर्य रक्षित को ही अनुयोगद्वारसूत्र का रचनाकार या संकलनकर्ता स्वीकार किया है। आर्य रक्षित का समय वीर निर्वाण की छठी शताब्दी है। इस रचना का समय वीर निर्वाण संवत् ५७०-५८४ के मध्य अनुमान किया गया है। अर्थात् विक्रम सवत् ११४ से १२७ के मध्य ईसा की प्रथम शती का अन्तिम चरण ही इसका रचना समय माना जाता है। इस विषय मे आगमों के अनुसधानकर्ता मुनि पुण्यविजय जी, मुनि जम्बूविजय जी तथा आचार्य महाप्रज्ञ जी तीनो एकमत हैं। व्याख्या ग्रन्थ ___ अनुयोगद्वारसूत्र पर तीन प्राचीन व्याख्या ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इस पर कोई नियुक्ति नहीं है।
चूर्णि-चूर्णि की भाषा प्राकृत है। इसके कर्ता जिनदासगणि महत्तर विक्रम की सातवी सदी मे हुए।
हरिभद्रीया वृत्ति-हरिभद्र सूरि आगमो के प्रसिद्ध और गम्भीर टीकाकार है। उन्होंने आवश्यक और दशवैकालिकसूत्र पर विस्तृत टीकाएँ लिखी हैं। नन्दी और अनुयोगद्वार पर उनकी सक्षिप्त टीका है। इनका समय विक्रम की आठवी शताब्दी माना जाता है। ____ मलधारीया वृत्ति-हरिभद्र सूरि के बाद आचार्य मलधारी हेमचन्द्र ने इस पर बहुत विस्तृत वृत्ति (व्याख्या) लिखी है। इनका समय विक्रम की बारहवीं शताब्दी माना गया है। द्वितीय भाग __ अनुयोगद्वारसूत्र विषय की दृष्टि से बहुत विस्तृत है और गूढ भी है। इसके सूत्रो की व्याख्या अथवा विवेचन किये बिना अर्थ समझ पाना कठिन होता है। इसलिए इसका विस्तार भी हो गया है। इसी कारण इस शास्त्र को दो भागो मे प्रकाशित किया गया है। प्रथम भाग गत वर्ष प्रकाशित हो चुका है। उसमें नवरस तक का वर्णन है। अब दस नाम प्रकरण से आगे का वर्णन इस भाग में है। इसमे भी अनेक प्रकार के गहन व रोचक विषय सम्मिलित हैं। प्रमाण, नय, निक्षेप का वर्णन इस दूसरे भाग मे है।
जैसा मैंने बताया-यह शास्त्र किसी एक ही विषय पर आधारित नही है, यह तो शास्त्र की व्याख्या करने की शैली समझाने वाला शास्त्र है। इसमे विभिन्न विषयो का समावेश है। रस, अलकार, व्याकरण, नक्षत्र ज्योतिष, न्याय शास्त्र, नय, निक्षेप, प्रमाण, काल, भाव आदि अनेक विषय इसमे समाये हुए है
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