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________________ PRASPAPSPAPPASPARAPTSHATSAPPSPASSPIRAPHYSIYAPAGAPPSPRSPRESSPAPER अधिक अक्षर से क्या हानि है? इसे वृत्तिकार निम्न दृष्टान्त द्वारा समझाते हैं (२) पाटलीपुत्र नगर में मौर्य वंश में उत्पन्न सम्राट अशोक राज्य करता था। अशोक को अपनी रानी से एक पुत्र हुआ था, जिसका नाम कुणाल था। कुछ समय के बाद ही राजकुमार कुणाल को उज्जयिनी भेज दिया गया। राजकुमार कुणाल उज्जयिनी में रहते-रहते जब आठ वर्ष का, हुआ, तब एक सन्देशवाहक द्वारा राजा को खबर मिली कि आपका राजकुमार अब आठ साल का हो गया है। ये समाचार जानकर सम्राट अशोक ने राजमहल में बैठे-बैठे ही अपने हाथ से एक पत्र लिखा। जिसमें लिखा कि “इदानीमधीयतां कुमारः।” (कुमार अब अध्ययन करें)। परन्त राजा उस पत्र को लिफाफे में बन्द किये बिना वहीं छोडकर किसी आवश्यक कार्यवश वहाँ से चले गये। वहाँ जो दूसरी रानी तिष्यरक्षिता खड़ी थी, उसने अवसर पाकर वह पत्र उठाकर पढ़ा। पढ़कर सोचा-'मेरे भी एक पुत्र है महेन्द्र लेकिन कुणाल से उम्र में छोटा है। राजा कुणाल को ही राज्य देंगे, क्योंकि कुणाल ही राजगद्दी के योग्य है मेरा पुत्र नहीं।' यह सोचकर मन ही मन कुछ निर्णय किया, और एक सलाई ली, उसे काजल में डुबोकर उस कागज में जहाँ 'अधीयताम्' शब्द था, वहाँ 'अंधीयताम्' (कुमार को अंधा कर दो) कर दिया। अब तो एक मात्रा के परिवर्तन से सारा ही अर्थ बदल गया। रानी ने वह पत्र वहीं रख दिया। राजा बाहर से आये तो उस पत्र को दुबारा पढ़े बिना ही पत्रवाहक के साथ कुणाल को वह पत्र लिफाफे में बन्द करके भेज दिया। कुमार के विश्वस्त सेवक ने पत्र में अप्रिय बात लिखी हुई होने से जोर से बोलकर नहीं सुनाई। कुमार ने उसे पढ़कर सुनाने का आदेश दिया तो उसने डरते-डरते उस पत्र को पढ़कर सुना दिया। पत्र में लिखित भाषा पर से कुमार ने सोचा कि 'हमारे मौर्यवंश में उत्पन्न किसी भी व्यक्ति ने आज तक राजाओं की आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया है, फिर मैं इसी वंश में उत्पन्न होकर पिताजी की आज्ञा का उल्लंघन कैसे कर सकता हूँ? ऐसा हो नहीं सकता !' यह सोचकर कुणाल ने तत्काल आग में तपाई हुई लोहे की सलाई ली और शोकाकुल परिवार के मना करते-करते ही उस गर्म सलाई से अपनी दोनों आँखों को आंज लिया। कुणाल अंधा हो गया। (विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ८६१ वृत्ति; हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ४१ मु. जं.) अधिक अक्षर दोष पर बन्दर की कथा ___ अधिक मात्रा के सम्बन्ध में (विशेषावश्यक भाष्य, गाथा ८६३ तथा हारिभद्रीया वृत्ति, पृ. ४१) एक उदाहरण है। (३) किसी वन में एक बड़ा सरोवर था। जनता में वह कामिक तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध था। सरोवर के किनारे बंजुल का पेड़ था। उस तीर्थ में एक चमत्कार था कि अगर कोई तिर्यंच बंजुल वृक्ष की शाखा पर चढ़कर सरोवर के पानी में गिरता, तो वह उस तीर्थ के प्रभाव से अनुयोगद्वार सूत्र Illustrated Anuyogadvar Sutra - ::::: ::::::::::::::::: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007655
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages520
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size18 MB
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