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DE DE DE DE TÍTÁSI DÍ SÉTÁTÉTI DI DI DID I V JE Z
Vibhatsa
Hasya
Karun
Prashant
filth, corpse, and obnoxious things
paradox or bizarreness of form, age, dress, and language
अनुयोगद्वार सूत्र
separation from beloved, confinement, killing, ailment, death, and fear
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concentration and complete serenity
बत्तीस दोष
सूत्र २६२/११ की व्याख्या में काव्य के बत्तीस दोषों का उल्लेख है, परन्तु उनका विवरण
यहाँ नहीं दिया है । स्वर मंडल प्रकरण में भी बत्तीस दोषों का उल्लेख है। वहाँ टीकाकार में इनका संकेत किया है । ३२ दोष सार रूप में इस प्रकार हैं
(१) असत्य प्रतिपादन
(३) अर्थशून्य केवल शाब्दिक संरचना (५) छलयुक्त प्रतिपादन (७) निस्सारता
(९) अपेक्षित अक्षरों और पदों से हीन (११) व्याहत पूर्वापर विरोध (१३) व्युत्क्रम (१५) विभक्ति - व्यत्यय (१७) स्वसिद्धान्त में अनुपदिष्ट (१९) स्वभाव हीन
(२१) कालदोष काल का व्यत्यय
(२३) छविदोष - अलंकार शून्यता (२५) वचनमात्र - निर्हेतुक (२७) असमास दोष (२९) रूपक दोष (३१) पदार्थ दोष
detachment, disgust, and apathy for violence brightening of the face and eyes
sorrow, lamenting, gloom, nervousness, and wailing
absence of perversion
(२) हिंसाकारक प्रतिपादन
(४) असंबद्ध प्रतिपादन
(६) द्रोहपूर्ण उपदेश
(८) आवश्यकता से अधिक अक्षर और पद (१०) पुनरुक्ति
(१२) युक्ति - शून्यता
(१४) वचन - व्यत्यय
(१६) लिंग- व्यत्यय
(१८) अपद - किसी अन्य छंद के अधिकार में अन्य छंद का कथन (२०) व्यवहित
(२२) यतिदोष - अस्थान में विराम
(२४) समयविरुद्ध - स्वसिद्धान्त के विरुद्ध
(२६) अर्थापत्ति दोष
(२८) उपमा दोष
(३०) निर्देश दोष (३२) सन्धि दोष ।
(देखें - बृहत्कल्पभाष्य भाग प्रथम, गाथा २७८ से २८१ की वृत्ति
तथा ज्ञान मुनि कृत हिन्दी टीका भाग २ पृ. २८८ से २९० । नवरसों का विस्तृत वर्णन भी इसी भाग २ में पृ. ३०७ पर देखा जा सकता है ।)
( ४३८ )
Illustrated Anuyogadvar Sutra
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१.१९.१.१.४.२०१६.५०१६४०४.५०१.५०४.५०४.५०४.५०४६.५०४.५०४, ५०४, ५०४, ५०४, ५०४, ५०४, ५०४, ५०४, ५०४,९०७.९.१९.१९८
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