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२६२. (६) (१) विनयोपचार-विनय करने से, (२) गुप्त रहस्यों को प्रकट करने से, तथा (३) गुरुपत्नी आदि के समक्ष मर्यादा का उल्लंघन करने से वीडनकरस उत्पन्न होता है। लज्जा और शंका इस रस के लक्षण हैं।७२ ।। वेलणओ रसो जहा
किं लोइयकरणीओ लज्जणियतरं ति लज्जिया मोत्ति। __ वारिज्जम्मि गुरुजणो परिवंदइ जं वहूपोत्तिं ॥७३॥ वीडनकरस का उदाहरण-(कोई नव वधू कहती है-) इस लौकिक व्यवहार से अधिक लज्जास्पद और क्या बात हो सकती है-मैं तो इससे बहुत लजाती हूँ-कि वरवधू का प्रथम समागम होने पर गुरुजन-सास आदि वधू द्वारा पहने वस्त्र की प्रशंसा करते हैं।।७३।। 5. VRIDANAK-RASA
262. (6) The Vridanak-rasa (sentiment of shame or bashfulness) has its origin in (1) observing modest behaviour, (2) revealing secrets, and (3) transgressing codes of modest behaviour before wives of guru and other respectable persons. It is characterized by shame and apprehension. (72)
The example of Vridanak-rasa (sentiment of shame or bashfulness) is—
Is there anything more shameful than this popular practice of the elders commending the garments worn by a bride on the night of consummation of her marriage. I feel so ashamed ! (73)
विवेचन-लोक मर्यादा तथा आचार मर्यादा के उल्लंघन से व्रीड़नक रस की उत्पत्ति होती है और लज्जा आना एवं आशंकित होना उसके लक्षण हैं। काम करने के बाद सिर झुक जाना, शरीर का संकुचित होना और दोष प्रकट न हो जाए इस आशंका से मन का दोलायमान-डांवा डोल बना रहना लज्जा है।
इस उदाहरण से पता चलता है कि किसी क्षेत्र या किसी काल में ऐसी रूढ़ि या लोकपरम्परा रही होगी कि नववधू को अक्षतयोनि सिद्ध करने के लिए सुहागरात के बाद उसके रक्तरंजित वस्त्रों का प्रदर्शन किया जाता था और कुल के वृद्ध जन उसे देखकर सन्तोष व्यक्त करते थे। इसलिए वीडनकरस में इसका उदाहरण दिया है।।७३ ॥ (हारि. वृत्ति. पृ. ३२४) अनुयोगद्वार सूत्र
( ४३० ) Illustrated Anuyogadvar Sutra
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