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( २६०. १० - इ) गीत के छह दोष इस प्रकार हैं(१) भीतदोष - भयभीत दशा में डरते हुए गाना । (२) द्रुतदोष - उद्वेगवश जल्दी-जल्दी गाना । (३) उत्पिच्छदोष - श्वास लेते हुए या हाँफते हुए गाना । (४) उत्तालदोष - तालविरुद्ध गाना ।
(५) काकस्वरदोष - कौए के समान कर्णकटु स्वर में गाना ।
(६) अनुनासदोष - नाक से स्वरों का उच्चारण करते हुए गाना ॥ ४७ ॥
SIX FAULTS OF A SINGING
260. (10-c) The six faults of singing are as follows—
(1) Bheet dosh-to sing in a frightened state of mind. (2) Drut dosh-to sing fast in excitement.
(3) Utpatti dosh — to sing with unstable breathing or getting short of breath while singing.
(4) Uttal dosh-to sing out of beats or rhythm.
(5) Kakasvar dosh-to sing in crow-like harsh or coarse voice.
(6) Anunasa dosh — to sing in nasal voice. (47)
गीत के आठ गुण
( १०. ई) पुण्णं रत्तं च अलंकिय च वत्तं तहेव मविघुट्टं ।
महुरं समं सुललियं अट्ठगुणा होंति गीयस्स ॥ ४८ ॥
( २६०. १० - ई) गीत के आठ गुण इस प्रकार हैं
(१) पूर्णगुण - स्वर के आरोह-अवरोह आदि से पूर्ण होना ।
(२) रक्तगुण - गेयराग से युक्त होकर गाना ।
(३) अलंकृतगुण - विविध शुभ स्वरों से सम्पन्न होकर गाना ।
(४) व्यक्तगुण - गीत के बोलों - स्वर - व्यंजनों का स्पष्ट रूप से उच्चारण करके गाना ।
अनुयोगद्वार सू
( ४१० )
Illustrated Anuyogadvar Sutra
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