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के उच्चारण में मुख्य रूप में जिस स्थान की भूमिका रहती है-यहाँ उसी अपेक्षा से उस एक-एक स्थान का उल्लेख किया गया है। किसी-किसी प्रति में निषाद स्वर का उत्पत्ति स्थान मुद्धाणेणय ऐसा-पाठ द्वारा मूर्धा, मस्तक बताया है। व्यावहारिक दृष्टि से यह पाठ अधिक संगत प्रतीत होता है। (संगीत सम्बन्धी विस्तृत विवेचन देखें श्री ज्ञानमुनि कृत हिन्दी टीका,
भाग २ पृ. २३८-४२ तक) Elaboration-Earlier we discussed various places in the body connected with seven musical notes. Here a single place of origin of each svar (musical notes) is stated. It is true that to produce a particular note various parts of the body are activated but one particular place plays a dominant role in producing a specific note. Here those places have been listed. In some alternative texts the source of nishad svar (musical note) is shown as head. Practically speaking the text used here appears to be more logical. (for more details about music refer to Hindi Tika of Anuyogadvara Sutra by Shri Jnana Muni, part-2, p. 238-42) जीवनिश्रित सप्त स्वर (३) सत्त सरा जीवणिस्सिया पण्णत्ता। तं जहा
(१) सज्जं रवइ मयूरो, (२) कुक्कुडो रिसभं रसं। (३) हंसो रवइ गंधारं, (४) मज्झिमं तु गवेलगा॥२८॥ (५) अह कुसुमसंभवे काले कोइला पंचमं सरं।
(६) छठं च सारसा कुंचा, (७) णेसायं सत्तमं गओ॥२९॥ (२६०-३) जीवनिश्रित-जीवों द्वारा उच्चारित होने वाले सातस्वरों का स्वरूप इस प्रकार है
(१) मयूर षड्जस्वर में बोलता है। (२) कुक्कुट (मुर्गा) ऋषभस्वर में (३) हंस गांधारस्वर में
(४) गवेलक (भेड़-मेमना) मध्यमस्वर में अनुयोगद्वार सूत्र
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Illustrated Anuyogadvar Sutra
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