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जानता है, अरूपी को नहीं। (२) अपनी एक अवधि-सीमा के भीतर रहे पदार्थों को ही जान सकता है।
(४) मनःपर्यवज्ञान-मन वाले जीव संज्ञी जीव कहलाते हैं। संज्ञी जीवों के मनोभावों को, उनके चिन्तन रूप मनःपरिणामों को जानना मनःपर्यवज्ञान है।
(५) केवलज्ञान-समस्त ज्ञानावरणीय कर्मों के क्षय से आत्मा की सम्पूर्ण ज्ञान शक्ति का प्रकाश होने पर लोक-अलोकवर्ती समस्त ज्ञेय पदार्थों को उनकी त्रिकालवर्ती, गुण-पर्यायों को जानने वाला केवलज्ञान है।
मतिज्ञान और श्रुतज्ञान सभी संसारी प्राणियों को होता है।
अवधिज्ञान देव, नरक भूमि में जन्म के साथ तथा मनुष्य व तिर्यंचों में विशेष कर्मों के क्षयोपशम से होता है।
मनःपर्यवज्ञान केवल विशिष्ट तपस्वी श्रमणों को ही होता है।
केवलज्ञान वीतराग आत्मा के चार घनघाती कर्म क्षय होने पर होता है। केवलज्ञान में अन्य चारों ज्ञान का अस्तित्व स्वयं समाहित हो जाता है। (पाँच ज्ञान का विस्तृत वर्णन सचित्र नन्दीसूत्र, पृष्ठ ७०-१८० देखें)
Elaboration-Nandi Sutra has discussed five types of knowledge in details (see Illustrated Nandi Sutra). In this Anuyogadvar Sutra shrut-jnana, the second of these five, has
been discussed in greater detail. Of the five kinds of knowledge ___four-abhinibodhik-jnana (mati-jnana), avadhi-jnana,
manahparyav-jnana and Keval-jnana-are non-vocal or nonlingual. Only shrut-jnana is vocal or lingual.
Basically knowledge is of two types-One is intuitive or cognitive and the other is linguistic or descriptive. Cognitive knowledge is beneficial to the individual who experiences it. But when it comes to benefitting others that cognitive knowledge turns into vocal knowledge. Non-lingual knowledge turns into linguistic knowledge. The self-oriented knowledge becomes other-oriented or beneficial to others. ___Mati-jnana, avadhi-jnana, manahparyav-jnana and Keval. jnana have no connection with speech. Thus they are called nonअनुयोगद्वार सूत्र
Illustrated Anuyogadvar Sutra
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