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________________ आठ कर्मों में चार अघाति कर्मों का उपशम नहीं होता। जैसे आयुष्य कर्म निरन्तर भोगा जाता है। साता-असाता के रूप में वेदनीय कर्म भी निरन्तर भोगा जा रहा है। घाति कर्मों में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय तथा अन्तराय कर्म का उपशम नहीं होता। केवल एक मोहनीय कर्म का उपशम होता है, क्योंकि मोहनीय कर्म की प्रकृतियाँ संवेगात्मक और विकारक होती हैं। ___ नीरस किये हुए कर्म दलिकों का वेदन प्रदेशोदय तथा रसयुक्त कर्म दलिकों का फल भोग-विपाकोदय है। (३) क्षायिक भाव-कर्म के पूर्ण विनाश को क्षय कहते हैं। क्षय से जो भाव प्राप्त होता है वह क्षायिकभाव है। यह भाव सादि-अनन्त है। जैसे जीव की अरिहंत सिद्ध आदि अवस्थाएँ। (४) क्षायोपशमिकभाव-कर्मों का क्षय और उपशम होना क्षयोपशम है। क्षयोपशम से उत्पन्न क्षायोपशमिकभाव है। यह भाव कुछ बुझी हुई और कुछ नहीं बुझी हुई अग्नि के समान जानना चाहिए। क्षयोपशम की प्रक्रिया में उदयावलिका प्राप्त अथवा उदीर्ण दलिकों का क्षय होता रहता है। सत्ता में रहते हुए भी जो दलिक उदय में आने योग्य नहीं है उन अनुदीर्ण दलिकों का उपशम होता रहता है। - इसके दो रूप बनते हैं-(१) उदय में आने योग्य कर्म दलिकों को विपाकोदय को अयोग्य बना देना। (२) तीव्र रस को मंद रस में परिणत करना। क्षयोपशम केवल चार घाति कर्म का ही होता है। अघाति कर्म का क्षयोपशम नहीं होता। ___ घातिकर्म आत्मा के ज्ञान, दर्शन, आदि चार मौलिक गुणों को आवृत तथा विकृत करते हैं, किन्तु उनका सर्वथा नाश नहीं करते इसलिए उनका क्षयोपशम होता है। (५) पारिणामिकभाव-परिणाम का अर्थ है-नये-नये पर्यायों में जाना। यह दो प्रकार का होता है-स्वाभाविक तथा प्रयोगजनित। यह परिणाम ही पारिणामिकभाव है। अथवा जिसके कारण मूल वस्तु में किसी प्रकार का परिवर्तन न हो, वस्तु की स्वभाव में ही परिणति होते रहना पारिणामिक भाव है। (६) सान्निपातिकभाव-इन पाँचों भावों में से दो-तीन आदि भावों का मिलना सन्निपात है, यह सन्निपात ही सान्निपातिक भाव कहलाता है। इन भावों का विस्तारपूर्वक स्वरूप निरूपण आगे किया जाता है। ___Elaboration-Bhaava is both attribute as well as mode of beings. In order to understand a being or soul fully it is necessary to understand its various modes. The form or activity of soul अनुयोगद्वार सूत्र । ( ३५० ) Illustrated Anuyogadvar Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007655
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages520
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size18 MB
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