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( १ ) इच्छाकार - बिना किसी दबाव के आन्तरिक प्रेरणा से व्रतादि का आचरण करने की
इच्छा ।
(२) मिथ्याकार - अकृत्य का सेवन हो जाने पर पश्चात्ताप द्वारा मैंने यह मिथ्या असत् आचरण किया, ऐसा विचार करना ।
(३) तथाकार - गुरु के वचनों को 'तहत' कहकर स्वीकार करना ।
(४) आवश्यकी - आवश्यक कार्य के लिए बाहर जाने पर गुरु से निवेदन करना ।
(५) नैषेधिकी - कार्य करके वापस आने पर अपने प्रवेश की सूचना देना ।
(६) आपृच्छना - किसी भी कार्य को करने के लिए गुरुदेव से आज्ञा लेना ।
(७) प्रतिपृच्छना - कार्य को प्रारम्भ करते समय पुनः गुरुदेव से पूछना अथवा किसी कार्य के लिए गुरुदेव ने मना कर दिया हो तब थोड़ी देर बाद कार्य की अनिवार्यता बताकर पुनः पूछना | (८) छंदना - अन्य सांभोगिक साधुओं से अपना लाया आहार आदि ग्रहण करने के लिए निवेदन करना।
( ९ ) निमन्त्रणा - आहारादि लाकर (किन्तु अभी तक लाया नहीं है ) आपको दूँगा, ऐसा कहकर अन्य साधुओं को निमंत्रित करना ।
(१०) उपसंपत् - श्रुतादि की प्राप्ति के लिए अन्य साधु की अधीनता स्वीकार करना । (इनका विस्तृत वर्णन सचित्र उत्तराध्ययन के समाचारी अध्ययन पृष्ठ ३२२ पर देखें)
Elaboration-The right behaviour or conduct as followed by civilized and virtuous people (here it means accomplished ascetics) is called samachari (behaviour). To arrange the parts of that samachari in a specific order is purvanupurvi (ascending sequence), and others.
(1) Icchakar-to have the desire to indulge in observing religious duties, like vows, of one's own volition without any compulsion.
(2) Mithyakar-to accept with a feeling of repentance any misdeed committed.
(3) Tathakar-to assent to the order or word of the preceptor by uttering 'tahat'.
(4) Avashyaki-to inform the guru when going out for any necessary work.
अनुयोगद्वार सूत्र
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Illustrated Anuyogadvar Sutra
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