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संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता
२००. से किं तं संगहस्स अट्ठपयपरूवणया ?
संगहस्स अट्ठपयपरूवणया एयाइं पंच वि दाराइं जहा खेत्ताणुपुबीए संगहस्स तहा कालाणुपुबीए वि भाणियवाणि, णवरं ठिती अभिलावो जाव से तं संगहस्स अणोवणिहिया कालाणुपुब्बी। से तं अणोवणिहिया कालाणुपुब्बी।
२००. (प्रश्न) संग्रहनयसम्मत अर्थपदप्ररूपणता क्या है ?
(उत्तर) इन पाँचों द्वारों का कथन संग्रहनयसम्मत क्षेत्रानुपूर्वी की तरह समझ लेना चाहिए। विशेष यह कि क्षेत्रानुपूर्वी में जैसे कि प्रदेशावगाढ आदि है, वैसे यहाँ पर तीन समय की स्थिति वाला पुद्गल आनुपूर्वी, एक समय की स्थिति वाला अनानुपूर्वी, दो समय की स्थिति वाला अवक्तव्य ऐसा प्रयोग करना चाहिए। यह संग्रहनयसम्मत अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी और अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी का वर्णन हुआ। (सूत्र ११६ देखें) SAMGRAHA NAYA SAMMAT ARTH-PADAPRARUPANA
200. (Question) What is this Samgraha naya sammat arth-padaprarupana (semantics conforming to generalized viewpoint)? ___ (Answer) The description of all these five dvars (doors of disqisition) should be read to be same as the aforesaid kshetra-anupurvi in this context. The only difference being that the substance having three samaya existence is anupurvi (sequential), that having one samaya existence is ananupurvi (non-sequential), and that having two samaya existence is avaktavya inexpressible) should be read instead of similar statements with respect to area of occupation, etc. (aphorism 116)
This concludes the description of Samgraha naya sammat anaupanidhiki kaal-anupurvi (disorderly timesequence conforming to generalized viewpoint) and anaupanidhiki kaal-anupurvi (disorderly time-sequence). अनुयोगद्वार सूत्र
( २८६ ) Illustrated Anuyogadvar Sutra
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