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(उत्तर) आदि में एक रखकर एकोत्तरवृद्धि द्वारा निर्मित पन्द्रह पर्यन्त की श्रेणी में परस्पर गुणा करने पर प्राप्त राशि में से आदि और अन्त के दो भंगों को कम करने पर शेष भंगों को ऊर्ध्वलोकक्षेत्र अनानुपूर्वी कहते हैं।
175. (Question) What is this Urdhvaloka kshetraananupurvi ?
(Answer) Place fifteen numbers starting from one and progressively adding one. Multiply all these numbers of this arithmetic progression and subtract 2 (depicting the ascending and descending sequence) from the result. This final result is called Urdhvaloka kshetra-ananupurvi (random area-sequence of upper worlds).
This concludes the description of Urdhvaloka kshetraananupurvi (random area-sequence of upper worlds).
विवेचन - प्रस्तुत क्षेत्रानुपूर्वी आदि में अधोलोक, मध्यलोक तथा ऊर्ध्वलोक सम्बन्धी विस्तृत वर्णन जानने के इच्छुक मलधारी हेमचन्द्र कृत टीका तथा श्री ज्ञानमुनि कृत हिन्दी टीका भाग १ पृ. ७०० से ७५० तक देखें।
Elaboration-Those who desire to study more details about these lower, middle, and higher worlds may study Tika by Maldhari Hemachandra and Hindi Tika by Jnana Muni Part I, p. 700-750.
क्षेत्रानुपूर्वी के वर्णन का द्वितीय प्रकार
१७६. अहवा ओवणिहिया खेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता । तं जहा(१) पुव्वाणुपुव्वी, (२) पच्छाणुपुवी, (३) अणाणुपुबी ।
१७६. अथवा औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी तीन प्रकार की है । यथा - ( १ ) पूर्वानुपूर्वी, (२) पश्चानुपूर्वी, और (३) अनानुपूर्वी ।
ANOTHER AUPANIDHIKI KSHETRA-ANUPURVI
176. Also, this Aupanidhiki kshetra-anupurvi (orderly area-sequence ) is of three types – ( 1 ) Purvanupurvi, (2) Pashchanupurvi, and ( 3 ) Ananupurvi.
योगद्वार
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Illustrated Anuyogadvar Sutra
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