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| चित्र परिचय १३ ।
Illustration No. 13 तिर्यक् लोक क्षेत्रानुपूर्वी तिर्यक् लोक में मनुष्यों की प्रधानता होने से इसे मनुष्य लोक भी कहा जाता है। इसका आकार थाली जैसा गोल है तथा असंख्य योजन विस्तृत है। इसमें एक के पीछे एक द्वीप और समुद्र वलयाकार (चूड़ी के आकार) में एक दूसरे से घिरे हुए हैं। जैसे
(१) सबसे मध्य में मेरूपवर्तत के चारों तरफ जम्बूद्वीप, (२) लवणसमुद्र, (३) धातकीखण्ड, (४) कालोदधि समुद्र, (५) पुष्करवर द्वीप। (मध्य में मानुषोत्तर पर्वत है) ___ इस प्रकार एक द्वीप, एक समुद्र एक दूसरे को घेरे हुए असंख्य द्वीप समुद्रों के अन्त में सबसे अन्त में स्वयंभूरमण द्वीप तथा स्वयंभूरमण समुद्र है। यह एक राज प्रमाण विस्तृत तिर्यक् लोक का अन्तिम किनारा है। जम्बूद्वीप से क्रमशः गिनती करना, तिर्यक् लोक क्षेत्रानुपूर्वी है। स्वयंभूरमण समुद्र से उल्टी गिनती करना-तिर्यक् लोक क्षेत्र पश्चानुपूर्वी है।
-सूत्र १६९
TIRYAK LOKA KSHETRA-ANUPURVI As it is predominantly inhabited by human beings (manushya), Tiryak Loka is also called Manushya Loka. It is round shaped like a plate and innumerable yojans in area. Here dveeps (mass of land) and samudra (mass of water) alternatively surround each other in ring formation.
(1) Meru mountain at the center surrounded by Jambudveep, (2) Lavan Samudra, (3) Dhatki Khand, (4) Kalodadhi Samudra, (5) Pushkarvar Dveep. (Manushottar mountain at the center)
At the end of innumerable masses of land and water thus surrounding each other alternatively, there is the last pair of Svayambhuraman Dveep and sea of the same name. This is the edge of the one Rajju spread of Tiryak Loka. To count starting from Jambu Dveep in ascending order is Tiryak Loka kshetra-purvanupurvi and to count starting from Svayambhuraman samudra in reverse order is called Tiryak Loka kshetra-paschanupurvi.
-Sutra : 169
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