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विवेचन-अन्तर काल का अर्थ है, एक परमाणु के दूसरे परमाणु रूप में परिणत होने के बीच का समय। जैसे एक त्रिप्रदेशी स्कन्ध त्रिप्रदेशी स्कन्ध के रूप को छोड़कर द्विप्रदेशी स्कन्ध तथा एक परमाणु के रूप में चला जाता है अथवा तीन परमाणु के रूप में चला जाता है। फिर वे तीनों परमाणु मिलकर त्रिप्रदेशी स्कन्ध के रूप में आते हैं, उनके बीच का समय अन्तर कहलाता है।
जैसे आनुपूर्वी द्रव्यों-त्रिप्रदेशी स्कन्धों से एक परमाणु बिछुड़ गया, एक समय वह स्कन्ध से अलग रहा, वापस उसी स्कन्ध में आ मिला-इस अपेक्षा से आनुपूर्वी द्रव्य का अन्तर काल जघन्यतः एक समय का होता है। आनुपूर्वी द्रव्य का उत्कृष्ट अन्तर काल अनन्तकाल है। जैसे एक त्रिप्रदेशी यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध है, उसके परमाणु बिखर गये। वे कभी परमाणु बने रहे, कभी स्कन्ध के साथ मिल गये इस प्रकार अनेक रूपों में परिवर्तित होते रहे। अनन्त काल के पश्चात् किसी प्रयोग (प्रयत्न) अथवा स्वभाव (सहज ही) से पुनः अपने मूल रूप में आ गये। इस अपेक्षा से उत्कृष्ट अन्तर काल अनन्तकाल कहा है। अवक्तव्य द्रव्य के लिए भी यही नियम लागू होता है।
अनानुपूर्वी द्रव्य का जघन्य अन्तर काल एक समय है। आनुपूर्वी द्रव्य का उत्कृष्ट अन्तर काल असंख्यातकाल है, इसका कारण यह है, एक परमाणु किसी अन्य परमाणु अथवा त्रिप्रदेशी आदि स्कन्धों के साथ असंख्य काल तक ही रह सकता है। उसके बाद फिर बिछुड़ जाता है। जैसा कि भगवती सूत्र (५/६९) में कहा है-'परमाणु परमाणु रूप में उत्कृष्टतः असंख्यकालतक ही रहता है, उसके पश्चात् उसका रूपान्तर अनिवार्य रूप में होता है। द्विप्रदेशी स्कन्ध से अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक भी यही नियम लागू होता है। (अनु. महाप्रज्ञ. पृ. १०३)
Elaboration–Antar or virah-kaal means the intervening period between termination of the present form and again regaining the same form. For example a triad or an aggregate (skandh) of three paramanus (ultimate-particles) disintegrates into an aggregate (skandh) of two and a free paramanu (ultimate-particle) or three free paramanus (ultimate-particles). These components, after a lapse of time, combine again to form a triad. This intervening period is called antar.
A triad loses one paramanu (ultimate-particle). This paramanu (ultimate-particle) remains free for just one samaya आनुपूर्वी प्रकरण
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The Discussion on Anupurvi
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