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अनुयोग द्वार सूत्र अनुयोगद्वार सूत्र जैन आगमों की व्याख्या पद्धति बताने वाला अपनी शैली का अनूठा आगम है। इसे आगम ज्ञान के नगर का प्रवेश द्वार कहा जा सकता है। एक प्राचीन दोहे में कहा है
ज्यों केले के पात में, पात-पात में पात। त्यों ज्ञानी की बात में बात-बात में बात।
अनुयोग द्वार के विषय में यह सूक्ति यथार्थ लगती है। एक सूत्र के भेद-प्रभेद-उपभेदअवान्तर भेद इस प्रकार इसमें बिन्दु का सिन्ध के रूप में विस्तार होता प्रतीत होता है।
और अन्त में पुनः उसी बिन्दु पर पहुंचकर समूचे विषय का समवतार किया जाता है।
तत्त्वविवेचन की सार्थक और संतुलित पद्धति के अनुसार इस सूत्र में विविध विषयों का विस्तार के साथ वर्णन है। इस आगम का अभ्यास करने पर प्राचीन धर्मग्रन्थों की वर्णन शैली सहज ही समझ में आ सकती है।
ANUYOG-DVAR SUTRA
An Introduction Anuyog-dvar Sutra is a unique Scripture that explains the method of detailed interpretation of Jain Agams. It can be called the gateway of the City of Agamic knowledge. A Hindi couplet aptly applies to the Subject matter of Anuyog-dvar. That couplet means that a word of the seer leads to many interpretations just as the branch of a plantation has covering of leaves one after the other. One Sutra has many division, Sub-divisions and further divisions just as a drop expanding and expanding takes the shape of an Ocean. And again arriving at the drop, the entire subject is:
Following the meaningful and balanced style to comment on tattvas (the essence), this Sutra deals with many subjects in detail. By studying this book thoroughly, the style of ancient Jain scriptures can be easily understood.
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