________________
___पुत्री की बात से ब्राह्मणी को उसके पति के स्वभाव का पता लग गया और उसी समय वह उसके पास आई। मीठे-मीठे बोलों से जमाई के क्रोध को शान्त करके बोली-“जमाईराज ! हमारे कुल की यह रीति है कि किसी शाप के दुष्प्रभाव से मुक्त होने के लिए सुहागरात में प्रथम समागम के समय पति के मस्तक पर चरण-प्रहार किया जाता है, इसी कारण मेरी पुत्री ने आपके साथ ऐसा व्यवहार किया है, किन्तु दुर्भावना या दुष्टता से यह सब नहीं किया है। इसलिए आप शान्त हों और इस बर्ताव के लिए उसे क्षमा करें।" ___ सासू की बात से उसका गुस्सा शान्त हुआ।
उसके बाद ब्राह्मणी ने तीसरी पुत्री को सलाह दी-“बेटी ! तेरा पति दुराराध्य है, इसलिए उसकी आज्ञा का बराबर पालन करना और सावधानीपूर्वक देवता की तरह उसकी सेवा करना।" (२) विलासवती गणिका की कथा
किसी नगर में विलासवती नाम की एक गणिका रहती थी। वह चौंसठ कलाओं में निपुण थी। उसने अपने यहाँ आने वाले पुरुषों की रुचि तथा अभिप्राय जानने के लिए अपने रति-भवन में दीवारों पर भिन्न-भिन्न प्रकार की रति-क्रियाएँ करते विविध जाति के पुरुषों के चित्र लगवाये थे। जो पुरुष वहाँ आता वह उसे अपने जाति स्वभाव के अनुसार चित्र के निरीक्षण में तन्मय होकर देखता। उसे देखकर गणिका उसकी रुचि, जाति, स्वभाव आदि को समझ जाती थी और उसी के अनुरूप उस पुरुष के साथ बर्ताव कर उसका आदर-सत्कार करके प्रसन्न कर देती थी। परिणामस्वरूप उसके यहाँ आने वाले व्यक्ति प्रसन्न होकर इनाम में खूब द्रव्य देकर जाते। (३) सुशील अमात्य की कथा
किसी नगर में भद्रबाहु नाम का राजा राज्य करता था। उसके अमात्य का नाम सुशील था। वह दूसरों के मनोभावों को जानने में निपुण था। ___ एक दिन अश्व-क्रीड़ा करने के लिए अमात्य सहित राजा नगर के बाहर गया। चलते-चलते रास्ते के किनारे बंजर भूमि में घोड़े ने लघु-शंका (पेशाब) कर दी। वह मूत्र वहाँ जैसा का तैसा भरा रहा, सूखा नहीं। अश्व-क्रीड़ा करने के बाद राजा पुनः उसी रास्ते से वापस लौटा। तब भी मूत्र को पहले जैसा भरा देखकर राजा के मन में विचार आया-'यदि यहाँ तालाब बनवाया जाये तो वह हमेशा जल से भरा रहेगा। यह भूमि बहुत कठोर है।' ___ इस प्रकार का विचार करता-करता राजा बहुत देर तक उस भूमि-भाग की ओर ताकता रहा और उसके बाद अपने महल में लौट आया। अनुयोगद्वार सूत्र
( १३२ )
Illustrated Anuyogadvar Sutra
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org