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| चित्र परिचय ९ ।
Illustration No.9
भाव उपक्रम (१) आगमतः भाव उपक्रम ___ जो जिस वस्तु को जानता है, वह उसके अर्थ में उपयुक्त (संलग्न) रहे, यह भावोपक्रम है। जैसे कोई आवश्यक का या ‘णमो अरिहंताणं' पद का अर्थ जानता है और वह उसी अर्थ में लीन हुआ अरिहंत सिद्ध भगवान का ध्यान करता हुआ उनको वन्दना करता है-यह आगमतः भावोपक्रम है। (२) नो आगमतः प्रशस्त भावोपक्रम ___गुरुजनों के संकेत को समझकर शिष्य गुरु के पास शास्त्र अध्ययन करता है तो यह नो आगमतः प्रशस्त भावोपक्रम है। जैसे-गुरु यदि घड़ी की तरफ देखें तो शिष्य समझ जाता है शास्त्र स्वाध्याय का समय हो गया है। वह शास्त्र पढ़ने आ जाता है। (३) नो आगमतः अप्रशस्त भावोपक्रम
किसी के आँखों, हाथों आदि के इशारों से उसके भावों, विचारों को जान लेना। जैसे-राजा सभा में जाने को तैयार होकर राज मुकुट की तरफ देखता है। तब सेवक मुकुट लेकर हाजिर हो जाता है।
-सूत्र ८८ से ९०
BHAVA UPAKRAM
(1) Agamatah-bhaava-upakram
One who knows the meaning of a particular thing and is sincerely involved with it. For example--some one who knows the meaning of Avashyak or the phrase Namo Arihantanam and offers homage to Arihant Siddha Bhagavan sincerely meditating about his virtues is called Agamatah-bhaava-upakram. (2) No-Agamatah-Prashast-bhaava-upakram
While studying from a teacher the disciple who understands his gestures and acts accordingly is called No-Agamatah-Prashast-bhaava. upakram. For example when the teacher looks at the clock the student understands that it is time to study. He comes to study scriptures. (3) No-Agamatah-Aprashast-bhaava-upakram
To understand the mind of a person through his gestures with eyes or hands. For example-The king, ready to go to the assembly, glances at his crown. The attendant at once brings the crown.
-Sutra : 88-90
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