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________________ उनके अभिप्रेत अर्थ से जोड़कर देखना चाहिए। एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं, इसलिए वहाँ पर किस प्रयोजनसे, किस नय दृष्टि से, किस निक्षेप दृष्टि से यह शब्द कहा गया है, इसका उचित विचार करके उसका वही अर्थ करना-इसी का नाम अनुयोग है जैसा कि आचार्यों ने कहा है-अणु ओयण मणुओगो सुयस्स नियएण जमभिहेएण। (आचार्य जिनभद्रगणि) ___ अर्थात् श्रुत के नियत अभिधेय को समझने के लिए उसके साथ उपयुक्त अर्थ का योग करनाअनुयोग है। अनुयोग द्वार सूत्र में अनुयोग शब्द पर अधिक चिन्तन नहीं किया गया है। परन्तु शास्त्रों के प्रसिद्ध भाष्यकार आचार्य जिनभद्र गणि तथा वृत्तिकार मलधारी हेमचन्द्र आदि आचार्यों ने 'अनुयोग' शब्द पर बड़े विस्तार के साथ चिन्तन किया है और यह स्पष्ट किया है कि किस कारण इस शास्त्र को 'अनुयोग द्वार' कहा है। अनुयोग द्वार का एक सरल-सा अर्थ है-शासन रूपी महानगर में अपने इच्छित तत्त्वज्ञान को खोजने और पाने के लिए प्रवेश का जो द्वार है, उसका नाम यहाँ अनुयोग द्वार समझ लेना चाहिए। शास्त्र को एक महानगर मान लें तो उस महानगर में प्रवेश करने का मार्ग अनुयोग द्वार है। शास्त्र के गम्भीर भाव या अर्थ को समझने के लिए जिस अनेकान्तवादी, नय-निक्षेप प्रधान दृष्टि की जरूरत है उस दृष्टि का उद्घाटन अनुयोग द्वार सूत्र करता है। ___ अनुयोग का अर्थ समझाने के लिए आचार्य भद्रबाहु स्वामी ने सर्वप्रथम आवश्यक नियुक्ति (गा. १२८-१२९) में गाय और बछड़े का दृष्टान्त दिया है, इसी दृष्टान्त को विस्तृत रूप में आवश्यक नियुक्ति के भाष्यकार जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने (गा. ४०९-४१०) उदाहरण देकर समझाया है। जिसका वर्णन और चित्र हमने सूत्र २ पर किया है। संक्षेप में जिस गाय का दूध दुहना हो, उसी के बछड़े को उसके पास लाकर उसका स्तन पान कराकर दूध दुहना यह एक प्रकार से 'योग्य संयोग' है। इस दृष्टान्त से अनुयोग का अर्थ सरलता से समझ में आ जाता है। अनुयोग के चार द्वार ___ यह जानना चाहिए कि आचार्य आर्य रक्षित ने जैन आगमों के विषयों का चार अनुयोगों में वर्गीकरण किया है। जैसे-धर्म कथानुयोग (दृष्टान्त उदाहरण) चरणानुयोग, (आचार विषय) गणितानुयोग (गणित, ज्योतिष और समुद्र पर्वत आदि का वर्णन) तथा द्रव्यानुयोग (जीव-पुद्गल आदि का वर्णन) इनमें प्रस्तुत अनुयोग द्वार की गणना प्रमुख रूपमें किसी भी अनुयोग मे नहीं की जा सकती, किन्तु इसमें प्रसंगानुसार चारों ही अनुयोग समाविष्ट हो जाते हैं। वास्तव में इसका विषय शास्त्र का अर्थ करने की शैली अर्थात् आगम की व्याख्या पद्धति समझाना है। इसलिए इसके विषयों को 'चार द्वार' के रूप में विभक्त किया है, जैसे-(१) उपक्रम, (२) निक्षेप, (३) अनुगम, और (४) नय। ___ इन चारों द्वारों में सबसे पहले उपक्रम द्वार है। यह सबसे अधिक विस्तृत है। सूत्र का लगभग ७५% अंश उपक्रम के वर्णन में ही पूरा हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007655
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages520
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size18 MB
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