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(Answer) No-agamatah-bhaava-avashyak (perfectavashyak without scriptural knowledge) is of three types(1) Laukik, (2) Kupravachanik, and (3) Lokottarik. (१) लौकिक भाव आवश्यक
२६. से किं तं लोइयं भावावस्सयं ? लोइयं भावावस्सयं पुवण्हे भारहं, अवरण्हे रामायणं। से तं लोइयं भावावस्सयं। २६. (प्रश्न) लौकिक भाव आवश्यक किसे कहते हैं ?
(उत्तर) दिन के पूर्वार्ध में महाभारत का और उत्तरार्ध में रामायण का वाचन या श्रवण करने को लौकिक नो-आगमतः भाव आवश्यक कहते हैं। (1) LAUKIK BHAAVA AVASHYAK
26. (Question) What is Laukik bhaava avashyak (mundane perfect avashyak) ?
(Answer) To listen to the recital of Mahabharat during first half of the day and that of Ramayan during the second half of the day is called laukik no-agamatah bhaava avashyak (mundane perfect avashyak without scriptural knowledge).
विवेचन-इस सूत्र में महाभारत और रामायण जैसे ग्रन्थों का पठन-श्रवण लौकिक नो-आगमतः भाव आवश्यक कहने का अभिप्राय यह है लोक मान्यता के अनुसार महाभारत दिन के प्रथम दो प्रहर में और रामायण दोपहर के बाद आवश्यक अनुष्ठान के रूप में पढ़ा जाता है। ये लौकिक आगम है अर्थात् लोक में प्रचलित ज्ञान के साधन हैं और इनके पढ़ने-सुनने में वक्ता-श्रोता उपयोग रूप दत्तचित्त रहते हैं तब लौकिक भाव आवश्यक हो जाता है। किन्तु नो-आगमतः कहने का अभिप्राय यह है कि जन-साधारण की दृष्टि में तो ये आगम हैं, परन्तु पुस्तक के पन्ने पलटना, श्रोता द्वारा हाथ जोड़ना ये सब क्रियाएँ साथ में जुड़ी रहने से एक अपेक्षा से ये नो-आगमतः भी हैं। क्योंकि क्रिया आगम नहीं है, केवलज्ञान की प्रवृत्ति ही आगम है। यहाँ 'नो' शब्द सर्व निषेधवाचक हैं, किन्तु केवल क्रिया का निषेध सूचन करने की दृष्टि से नो-आगमतः कहा है।
Elaboration–The reason for stating reading and reciting of Ramayan and Mahabharat as mundane perfect avashyak without scriptural knowledge is that according to the popular belief आवश्यक प्रकरण
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