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________________ oostel... प्रकाशकीय ने "ज्ञानदान सबसे महान दान है" - इस वचन के अनुरूप परम श्रद्धेय उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी भगवद् वाणी के रूप में निबद्ध जैन सूत्रों का हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद कराकर चित्र सहित प्रकाशन की महत्त्वपूर्ण दीर्घकालीन योजना बनाई है। इस योजना में अब तक नौ आगम प्रकाशित हो चुके हैं। हमारा यह परम सौभाग्य है कि उत्तर भारतीय प्रवर्तक महास्थविर गुरुदेव भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी म. की सतत प्रेरणा से उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी आगम सेवा के इस महान पुण्य कार्य में हम सबको प्रेरणा और प्रोत्साहन प्रदान कर युग-युग तक चिरस्थायी रहने वाला ज्ञानदीप प्रज्वलित कर रहे हैं। यह ज्ञान दीप न तूफानों में चंचल होता है और न ही महाकाल के थपेड़ों से बुझ पाता है। वास्तव में 'अमर ज्ञानदीप जलाकर श्री अमर मुनि जी एक युगान्तरकारी कार्य कर रहे हैं । सचित्र आगम प्रकाशन योजना में इस जटिल अनुयोगद्वार सूत्र का कार्य लगभग दो वर्ष से चल रहा है, अभी भी यह प्रथम भाग के रूप में आधा ही प्रकाशित हो रहा है। अगला अंग दूसरे भाग में प्रकाशित होगा। अगले वर्ष भी हम दो आगम प्रकाशित करना चहाते हैं। जैन धर्म दर्शन के मूल शब्दों का अभिप्राय समझकर उनके भाव के अनुसार अंग्रेजी में उनका अनुवाद करना वास्तव में बहुत ही कठिन और व्यापक चिन्तन-मनन का कार्य है। खासकर अनुयोगद्वार जैसे आगम में तो बहुत ही श्रम करना पड़ा है। फिर भी हमें संतोष है कि विद्वान अनुवादक ने आगमों के भाव के अनुसार मनन करके अंग्रेजी परिभाषाएँ बनाई हैं और उनको सुन्दर सहज रूप से प्रस्तुत की है। श्रीचन्द जी सुराना (अनुवाद, विवेचन व सम्पादन ) तथा श्री सुरेन्द्र बोथरा ( अंग्रेजी अनुवाद) का सहयोग तो प्रारम्भ से ही हमें उपलब्ध है। इसके साथ ही आगमों के अभ्यासी विद्वान् श्री राजकुमार जी जैन (रिटायर्ड आई. ए. एस. दिल्ली) भी उपासक दशा व अनुत्तरौपपातिक सूत्र के अंग्रेजी अनुवादक के रूप में इस अभियान से जुड़ गये हैं। अनुयोगद्वार सूत्र सहित कुछ अन्य आगमों के अन्तिम प्रूफ भी आप श्री की नजर से निकले हैं। चित्रकार डॉ त्रिलोक शर्मा ने इस आगम के चित्र बनाये हैं। चित्रों के माध्यम से आगमों का गम्भीर कथन बहुत ही सरल रूप में प्रकट हो गया है, जो सबके लिए सुबोध है। इन चित्रों के रेखांकन आगमों की मर्मज्ञ विदुषी डॉ. सरिता जी म. को भी दिखाये गये हैं और उनके सुझाव अनुसार उचित संशोधन भी किया गया है। हम सभी सहयोगी बंधुओं के प्रति कृतज्ञ हैं। भविष्य में उनके सहयोग की आशा / आकांक्षा के साथ । Jain Education International ( ५ ) For Private & Personal Use Only विनीत महेन्द्रकुमार जैन (अध्यक्ष) पद्म प्रकाशन www.jainelibrary.org
SR No.007655
Book TitleAgam 32 Chulika 02 Anuyogdwar Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2001
Total Pages520
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_anuyogdwar
File Size18 MB
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