SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५. तत्पश्चात् वह सूर्याभदेव पाँच अनीकाधिपतियों द्वारा परिरक्षित वज्ररत्नमयी गोल मनोज्ञ-आकार वाले यावत् एक हजार योजन लम्बे अत्यन्त ऊँचे महेन्द्रध्वज को आगे करके चार हजार सामानिक देवों यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देवों एवं सूर्याभ विमानवासी 2 और दूसरे वैमानिक देव-देवियो के साथ समस्त ऋद्धि यावत् वाद्यनिनादों सहित दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवधुति, दिव्य देवानुभाव-प्रभाव का अनुभव, प्रदर्शन और अवलोकन करते हुए सौधर्मकल्प के मध्य भाग में से निकलकर सौधर्मकल्प के उत्तरदिग्वर्ती निर्याण मार्ग-निकलने के मार्ग के पास आया। ॐ वहाँ से एक लाख योजन प्रमाण विस्तार वाली यावत् उत्कृष्ट दिव्य देवगति से नीचे उतरकर गमन करते हुए तिरछे, असख्यात द्वीप समुद्रों के बीचोंबीच से होता हुआ नन्दीश्वर द्वीप और उसकी दक्षिण-पूर्व दिशा (आग्नेयकोण) में स्थित रतिकर पर्वत पर पहुँचा।। वहाँ आकर उस दिव्य देवऋद्धि यावत दिव्य देवानुभाव आदि को धीरे-धीरे सकुचित और संक्षिप्त करके जहाँ जम्बूद्वीप नामक द्वीप और उसका भरत क्षेत्र था एव उस भरत क्षेत्र में भी जहाँ आमलकप्पा नगरी तथा आम्रशालवन चैत्य था और उस चैत्य में जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ आया। वहाँ आकर उस दिव्य यान-विमान के साथ श्रमण भगवान महावीर की तीन बार * प्रदक्षिणा करके श्रमण भगवान महावीर के उत्तर-पूर्व दिग्भाग-ईशानकोण में ले जाकर ka भूमि से चार अंगुल ऊपर अधर रखकर उस दिव्य यान-विमान को खड़ा किया। उस दिव्य यान-विमान को खडा करके वह सपरिवार चारों अग्रमहिषियों, गंधर्व और नाट्य दोनों प्रकार के अनीकों-सेनाओं को साथ लेकर पूर्व दिशावर्ती त्रिसोपान द्वारा उस दिव्य यान-विमान से नीचे उतरा। । तत्पश्चात् सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देव उत्तरदिग्वर्ती त्रिसोपान द्वारा उस दिव्य यान-विमान से नीचे उतरे तथा इनके अतिरिक्त शेष दूसरे देव और देवियाँ दक्षिण दिशा के त्रिसोपान प्रतिरूपक द्वारा उस दिव्य यान-विमान से उतरे। DEPARTURE OF SURYABH DEV TOWARDS AAMAL-KAPPA ____65. Thereafter Suryabh Dev came out from the centre of Saudharma heaven to the exit in the north. He had five commanders of the army for his security. One thousand yojans highes gem-studded round-shaped Mahendra Dhvaj (the celestial flag) was moving ahead of him. Four thousand gods of equal status, sixteen hthousand gods serving as security guards and many other gods and " सूर्याभ वर्णन (63) Description of Suryabh Dev ** XX** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy