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गति की अत्यन्त तीव्रता बताने के लिए यहाँ त्वरा, चपल, तीव्र, चण्ड आदि अनेक समानार्थक शब्दो का प्रयोग किया है।
Elaboration-The process of spreading soul-atoms beyond the original body while still linked to it is called Samudghat. The soul-atoms are spread beyond the original body due to seven reasons. As such Samudghat is also of seven types. Here we are concerned with the fluid Samudghat. This is done when one possesses fluid body. A person possessing skill of fluid blessing (Labdhi) while engaging in this process, spreads his soul-atoms upto his body and then emits them beyond it creating a numerable yojans long rod with his soul-atoms.
The fluid process is of two types which is done by those having such skill. They are Prithak kriya and Aprithak kriya. The serving gods performed Prithak kriya first of all and thus created a rod of soul-atoms in this kriya Thereafter each one did fluid process second time in order to transform their body to the maximum.
Many words having similar meaning (Synonyms) have been used to show extremely high speed.
१४. 'देवा' इ समणे भगवं महावीरे ते देवे एवं वयासी - पोराणमेयं देवा ! जीयमेयं देवा ! किच्चमेयं देवा ! करणिज्जमेयं देवा ! आचिन्नमेयं देवा ! अब्भणुण्णायमेयं देवा ! जं णं भवणवइ - वाणमंतर - जोइसिय- वेमाणिया देवा अरहंते भगवंते वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता तओ साईं साई णाम - गोयाई साहिंति, तं पोराणमेयं देव ! जाव अब्भणुण्णायमेयं देवा !
१४. तब उन आभियोगिक देवों को सम्बोधित कर श्रमण भगवान महावीर ने इस प्रकार कहा - "हे देवो ! यह पुरातन है अर्थात् प्राचीनकाल से देवो में परम्परा से चला आ रहा है। हे देवो ! यह करणीय है अर्थात् देवो को करना ही चाहिए। हे देवो ! यह आचीर्ण है अर्थात् देवों द्वारा पहले भी इसी प्रकार आचरण किया जाता रहा है । हे देवो ! यह अनुज्ञात है अर्थात् पूर्व के सब देवेन्द्रों ने संगत माना है कि भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव अरिहत भगवन्तो को वन्दन - नमस्कार करते हैं और वन्दन-नमस्कार करके अपने-अपने नामगोत्र कहते हैं ( अपना परिचय देते हैं) । यह पुरातन है यावत् हे देवो ! यह अभ्यनुज्ञात - सर्वसम्मत पद्धति है । "
14. Then Bhagavan Mahavir addressed to the said Abhiyogik gods as follows-"O the celestial ones! This is an age-old tradition
रायपसेणियसूत्र
Rai-paseniya Sutra
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