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________________ the project of welfare of the common man, the charity, the service and assistance to the public Do not ignore works of goodwill on the pretext of self-meditation." It is a very important and mind-searching direction. King Pradeshi is intelligent and knows moral and ethical values. He understands this direction. राजा प्रदेशी का आश्वासन २७३. तए णं पएसी केसि कुमारसमणं एवं क्यासी__णो खलु भंते ! अहं पुव् िरमणिग्ने भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविस्सामि, जहा वणसंडे इ वा जाव खलवाडे इ वा। __अहं णं सेयवियानगरीपमुक्खाइं सतगामसहस्साइं चत्तारि भागे करिस्सामि, एगं भागं बलवाहणस्स दलइस्सामि, एगं भागं कुट्ठागारे छुभिस्सामि, एगं भागं अंतेउरस्स दलइस्सामि, एगेणं भागेणं महतिमहलयं कूडागारसालं करिस्सामि, तत्थ णं बहूहिं पुरिसेहिं दिनभइभत्तवेयणेहिं विउलं असणं-पाणं-खाइमं-साइमं उवक्खडावेत्ता बहूणं समण-माहण-भिक्खुयाणं-पंथियपहियाणं परिभाएमाणे बहूहिं सीलव्यय-गुणवयवेरमण-पचक्खाणपोसहोववासस्स जाव विहरिस्सामि त्ति कटु जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव तिसिं पडिगए। २७३. तब प्रदेशी राजा ने केशीकुमार श्रमण से इस प्रकार निवेदन किया_ “भदन्त ! आप द्वारा दिये गये वनखंड आदि के उदाहरणों से मै समझ गया हूँ कि पहले रमणीय होकर बाद में अरमणीय नहीं बनूंगा। ____ मैंने यह विचार किया है कि अपनी सेयविया नगरी आदि सात हजार ग्रामो के चार विभाग करूँगा। उनमें से एक भाग राज्य की सुव्यवस्था और संरक्षण के लिए बल (सेना) और वाहन के लिए दूंगा, एक भाग प्रजा के पालन हेतु भण्डार में अन्न आदि के संग्रहण हेतु रखूगा, एक भाग अंतःपुर (परिवार) के निर्वाह और रक्षा के लिए दूंगा और शेष एक भाग से एक विशाल कूटाकारशाला (सुरक्षित भण्डार-घर) बनवाऊँगा और फिर बहुत से पुरुषों को भोजन, वेतन और दैनिक मजदूरी पर नियुक्त कर प्रतिदिन विपुल मात्रा में अशन, पान, खादिम, स्वादिम रूप चारों प्रकार का आहार बनवाकर अनेक श्रमणों, माहनों, भिक्षुओं, यात्रियों और पथिकों को देते हुए एव शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास आदि यावत् (तप द्वारा आत्मा को भावित करते हुए) अपना जीवन-यापन करूँगा।" ऐसा कहकर वह प्रदेशी राजा अपने नगर की तरफ चला गया। केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा (397) Keshu Kumar Shraman and King Pradeshi (OANAORVAORMATMA YOUGBYGORYKOnVORTAOntan D R "*" * "* "* अजग CHECK ** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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