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फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्तासोग-किंसुयसुयमुहगुंजद्धरागसरिसे कमलागरनलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते अंतेउरपरियालसद्धिं संपरिवुडस्स देवाणुप्पिए वंदित्तए नमंसित्तए एतमटुं भुजो भुञ्जो सम्मं विणएणं खामित्तए-त्ति कटु जामेव दिसि पाउत्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
तए णं से पएसी राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव तेयसा जलंते हद्वतुट्ठ जाव हियए जहेव कूणिए तहेव निग्गच्छइ अंतेउरपरियालसद्धिं संपरिबुडे पंचविहेणं अभिगमेणं वंदइ नमसइ एयमटुं भुजो भुजो सम्मं विणएणं खामेइ।
२७०. केशीकुमार श्रमण के इस संकेत को सुनकर, समझकर प्रदेशी राजा ने निवेदन
किया
___"हे भदन्त ! आपका कथन योग्य है, किन्तु मेरा इस प्रकार का आन्तरिक विचारसंकल्प और भावना है कि अभी तक आप देवानुप्रिय के प्रति मैंने जो प्रतिकूल, अप्रिय और
विपरीत व्यवहार किया है, उसके लिए आने वाले कल, रात बीत जाने पर, जब उत्पल * और कमल आदि विकसित हो जायेंगे, प्रभातकालीन श्वेत-लाल प्रभा बिखरेगी। रक्त र अशोक, पलाशपुष्प, तोते की चोच और गुंजाफल के आधे भाग जैसे लाल (अरुण आभा
लिए) सरोवर में स्थित कमलिनी को विकसित करने वाला तेजयुक्त जाज्वल्यमान र सहस्र-रश्मि दिनकर (सूर्य) का प्रकाश होगा तब मै अपने अन्तःपुर-परिवार सहित आप
देवानुप्रिय की वन्दना-नमस्कार करने और अवमानना रूप अपने अपराध की बारम्बार - विनयपूर्वक क्षमापना के लिए सेवा में उपस्थित होऊँगा।" ऐसा निवेदन कर वह प्रदेशी राजा
जिस ओर से आया था उसी ओर लौट गया। अपनी नगरी को चला गया। * दूसरे दिन रात्रि बीतने पर, प्रभात हो जाने पर जाज्वल्यमान तेज सहित दिनकर के
उदित होने पर प्रदेशी राजा हृष्ट-तुष्ट विकसित हृदय होता हुआ कोणिक राजा की तरह (समारोहपूर्वक) दर्शन करने निकला। उसने अन्तःपुर-परिवार आदि के साथ पाँच प्रकार के अभिगमपूर्वक वन्दन-नमस्कार किया और यथाविधि विनयपूर्वक अपने प्रतिकूल आचरण के लिए बारम्बार क्षमा याचना की।
270. Listening to this direction of Keshi Kumar Shraman and properly understanding it, king Pradeshi requested___“Reverend Sir ! Whatever you have said is true, but my inner
feeling and thought is that whatever opposite, undesirable, * केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
(389) Kesh Kumar Shraman and King Pradeshi
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