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ॐ “भदन्त ! मैं वैसा कुछ नहीं करूँगा जिससे उस लोहभारवाहक पुरुष की तरह मुझे पश्चात्ताप करना पडे। अतः मैं आप देवानुप्रिय से केवलि-प्ररूपित धर्म सुनना चाहता हूँ।"
केशीकुमार श्रमण ने कहा- “देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हे सुख उपजे वैसा करो, परन्तु शुभ * कार्य में विलम्ब मत करो।" र प्रदेशी की जिज्ञासा-वृत्ति देखकर केशीकुमार श्रमण ने जिस प्रकार चित्त सारथी को
धर्मोपदेश देकर श्रावकधर्म समझाया था उसी प्रकार राजा प्रदेशी को भी धर्मकथा सुनाकर
गृहस्थधर्म (श्रावकधर्म) का विस्तार से विवेचन किया। राजा गृहस्थधर्म स्वीकार करके * सेयविया नगरी की ओर चलने को तत्पर हुआ। TIE ACCEPTANCE OF VOWS OF A HOUSEHOLDER BY PRADESHI
268. Thus at the advice of Keshi Kumar Shraman and after gaining spiritual knowledge king Pradeshi bowed to him in respect and requested—
“Sir! I shall not do such an act that I may have to repent in the end like that carrier of iron-load. So I want to listen from you the philosophical thought as propounded by Kewali (the perfect souls).” ____Keshi Kumar Shraman replied "O the blessed ! Do what gives you pleasure, but do not delay the good deed."
Finding the inward curiosity of king Pradeshi to listen about * religion, he gave him religious discourse in the same manner as he
had earlier given to Chitta Saarthi. He explained in detail the vows meants for a householder. King Pradeshi then accepted the vows of the householder and got ready to return to Seyaviya town. आचार्य के प्रति कर्त्तव्य-बोध
२६९. तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासीजाणासि तुमं पएसी ! कइ आयरिया पन्नत्ता ?
हंता जाणामि, तओ आयरिआ पण्णत्ता, तं जहा-१. कलायरिए, २. सिप्पायरिए, * ३. धम्मायरिए।
जाणासि णं तुमं पएसी ! तेसिं तिण्हं आयरियाणं कस्स का विणयपडिवत्ती पउंजियव्वा ?
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रायपसेणियसूत्र
(386)
Rai-paseniya Sutra
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