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________________ * quantity of tin, a large quantity of iron can be got in exchange. So you should discard the iron and collect tin." Then that person replied—“O the blessed ! I am carrying this iron-load from a great distance since long. I have tied the iron tightly, with very strong knots and with great efforts. So I cannot discard it in order to collect tin in its place.” (ङ) तए णं ते पुरिसा तं पुरिसं जाहे णो संचायंति बहूहि आघवणाहि य पनवणाहि य आघवित्तए वा पण्णवित्तए वा तया अहाणुपुब्बीए संपत्थिया, एवं तंबागरं रुप्पागरं सुवण्णागरं रयणागरं वइरागरं। ___तए णं ते पुरिसा जेणेव सया जणवया, जेणेव साइं साइं नगराइं, तेणेव उवागच्छन्ति वयरविक्कणणं करेंति, सुबहुदासीदास गोमहिस गवेलगं गिण्हंति, अट्ठतलमूसियवडंसगे कारावेंति, पहाया कयबलिकम्मा उप्पिं पासायवरगया फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहि वरतरुणी-संपउत्तेहिं उवणचिजमाणा उवलालिज्जमाणा इट्टे सद्द-फरिस-जाव विहरंति। (ङ) तब दूसरे साथियों ने उस व्यक्ति को अनुकूल-प्रतिकूल सभी तरह से समझाया, लाभ-हानि बताने वाले वचनों द्वारा समझाया। लेकिन जब वे उस पुरुष को समझाने-बुझाने में समर्थ नही हुए तो अनुक्रम से आगे-आगे चलते गये। वहाँ-वहाँ पहुँचकर उन्होंने अनुक्रम मे तॉबे की, चॉदी की, सोने की, रत्नों की और हीरों की खाने देखीं। इनको जैसे-जैसे बहुमूल्य वस्तुएँ मिलती गईं, वैसे-वैसे पहले-पहले के अल्प मूल्य वाले ताँबे आदि को छोडकर अधिक-अधिक मूल्य वाली वस्तुओं को बाँधते गये। (सभी स्थानों पर उन्होने अपने उस लोहे वाले दुराग्रही साथी को समझाया किन्तु उसके दुराग्रह को छुडाने में सफल नहीं हुए) अटवी को पार करके वे सभी व्यक्ति जहाँ अपना जनपद-देश था, जहाँ अपने-अपने नगर थे, वहाँ आये। वहाँ आकर उन्होंने हीरों को बेचा। उससे बहुत धन-सम्पत्ति प्राप्त हुई। उससे अनेक दास, दासी, गाय, भैस और भेड़ों आदि को खरीदा। बडे-बडे आठ-आठ मंजिल के ऊँचे भवन बनवाये। अब वे वहाँ पर स्नान, बलिकर्म आदि करके उन प्रासादों के ऊपरी भागों में बैठकर सगीत आदि सुनते; तरुणियों द्वारा की जा रही नृत्य-गानयुक्त बत्तीस प्रकार की नाट्य लीलाओं को देखते, मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, गंध मूलक मनुष्य-सम्बन्धी कामभोगों को भोगते हुए सुखपूर्वक रहने लगे। - * केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा (383) Keshu Kumar Shraman and King Pradeshu Ex OYOYON X४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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