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________________ are different entities. But since the insects entered the pot even without a hole or gap, I have firm belief that soul and body are one or in other words that soul is not different from the body." तप्त लोह का उदाहरण २५१. तए णं केसी कुमारसमणे पएसीं रायं एवं वयासी अत्थि गं तुमे पएसी ! कयाइ अए धंतपुव्वे वा धम्मवियपुव्वे वा ? हंता अत्थि । सेणू पसी ! अए धंते समाणे सव्वे अगणिपरिणए भवति ? हंता भवति । अथ णं पएसी ! तस्स अयस्स केई छिड्डी इ वा जेणं से जोई बहियाहिंतो अंतो अणुपविट्ठे ? नो इमट्ठे सम । एवामेव पएसी ! जीवो वि अप्पsिहयगई पुढविं भिच्चा, सिलं भिच्चा बहियाहिंतो अणुपविसइ, तं सद्दहाहि णं तुमं पएसी ! तहेब । २५१. तब प्रदेशी राजा के तर्क का उत्तर देते हुए केशीकुमार श्रमण ने कहा "हे प्रदेशी ! क्या तुमने पहले कभी अग्नि से तपाया हुआ लोहा देखा है अथवा स्वयं लोहे को तपवाया है ?" प्रदेशी - "हॉ, भदन्त !” केशीकुमार श्रमण-"हे प्रदेशी ! यह बताओ, तपाने पर वह लोहा पूर्णतया अग्निरूप में हो जाता है या नहीं ?" प्रदेशी - "हॉ, भदन्त ! हो जाता है ।" केशीकुमार श्रमण - "हे प्रदेशी ! तब उस लोहे में कोई छिद्र आदि होता है या हुआ क्या, जिससे वह अग्नि बाहर से उसके भीतर प्रविष्ट हो गई ?" प्रदेशी - " भदन्त ! ऐसा नहीं होता है । अर्थात् उस लोहे में कोई छिद्र आदि नहीं होता ।" केशीकुमार श्रमण - " तो इसी प्रकार जीव भी अप्रतिहत गति वाला होता है, वह पृथ्वी, शिला आदि का भेदन करके बाहर से भीतर प्रविष्ट हो जाता है। इसीलिए तुम इस बात की श्रद्धा-प्रतीति करो कि जीव भिन्न है और शरीर भिन्न है । " शीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा Jain Education International (345) Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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