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STERE O Pradeshi ! After seeing me, didn't you think that a fool is * serving a fool upto that I cannot freely move even in my own land ?
Pradeshi ! Is my this statement true ?" the Pradeshi replied-—"Yes, it is true. I had thought as such.” * पाँच ज्ञान सम्बन्धी चर्चा
२४०. तए णं से पएसी राया केसि कुमारसमणं एवं वयासी-से केणटेणं भंते ! तुझं नाणे वा दंसणे वा जेणं तुझे मम एयारूवं अज्झत्थियं जाव संकप्पं समुप्पण्णं जाणह
पासह ? र २४०. तत्पश्चात् प्रदेशी राजा ने केशीकुमार श्रमण से कहा-'भदन्त ! आपको ऐसा
कौन-सा ज्ञान और दर्शन प्राप्त है कि जिसके द्वारा आपने मेरे इस प्रकार के आन्तरिक मनोगत भावों को जान लिया, देख लिया?" DISCUSSION ABOUT FIVE TYPES OF KNOWLEDGE (JNAN)
240. Then king Pradeshi asked Keshi Kumar ShramanKO "Reverend Sir ! What is the Jnan (knowledge) and darshan
(perception) that you possess which has enabled you to see and know the thoughts in my mind.”
२४१. तए णं से केसीकुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी-एवं खलु पएसी ! अम्हं समणाणं निग्गंथाणं पंचविहे नाणे पण्णते, तं जहा-आभिणिबोहियणाणे सुयनाणे ओहिणाणे मणपज्जवणाणे केवलणाणे। से किं तं आभिणिबोहियनाणे ? आभिणिबोहियनाणे चउबिहे पण्णत्ते, तं जहा-उग्गओ ईहा अवाए धारणा। से किं तं उग्गहे ? उग्गहे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-नंदीए जाव से तं धारणा, से तं आभिणिबोहियनाणे। से किं तं सुयनाणे ?
सुयनाणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-अंगपविटुं च, अंगबाहिरं च, सव्वं भाणियव्वं जाव दिट्ठिवाओ।
ओहिणाणं भवपच्चइयं, खओवसमियं जहा णंदीए। रायपसेणियसूत्र
Raz-paseniya Sutra
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