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ॐ तए णं से केसी कुमारसमणे चित्तं सारहिं एवं वयासी-अवि या इं चित्ता ! * जाणिस्सामो।
तए णं से चित्ते सारही केसिं कुमारसमणं वंदइ नमसइ, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटे आसरहं दुरूहइ, जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसि पडिगए।
२३५. केशीकुमार श्रमण के वचन सुनकर चित्त सारथी ने निवेदन किया-“हे भदन्त ! किसी समय कबोज देशवासियो ने चार सुन्दर घोडे उपहार रूप में भेंट किये थे। मैंने उनको प्रदेशी राजा के पास भिजवा दिया था, तो भगवन् ! इन घोडो के बहाने मै शीघ्र ही प्रदेशी राजा को आपके पास लाऊँगा। तब हे देवानुप्रिय | आप प्रदेशी राजा को धर्मकथा कहते हुए
लेशमात्र भी ग्लानि अनुभव मत करना-खेदखिन्न या उदासीन न होना। हे भदन्त ! आप - अग्लानभाव से(सहज प्रसन्नभावपूर्वक सकोचरहित होकर) प्रदेशी राजा को धर्मोपदेश देना।
हे भगवन् । आप अपनी इच्छानुसार प्रदेशी राजा को धर्म का कथन करना।" ___ तब केशीकुमार श्रमण ने चित्त सारथी से कहा-“हे चित्त । अवसर-प्रसग आने पर
देखा जायेगा।" ॐ तत्पश्चात् चित्त सारथी ने केशीकुमार श्रमण को वन्दना की, नमस्कार किया और फिर
जहाँ चार घटो वाला अश्व-रथ खडा था, वहाँ आकर उस चार घटो वाले अश्व-रथ पर आरूढ हुआ। जिस दिशा से आया था उसी ओर लौट गया। THE PROPOSAL OF CHITTA TO BRING KING PRADESHI
235. After hearing this reply of Keshi Kumar Shraman Chitta Saarthi said—“Reverend Sır ! Sometimes the residents of Kamboj had presented four beautiful horses as a gift. I had sent them to king Pradeshi. On pretext of testing those horses, I shall soon bring king Pradeshi to you. At that time while giving spiritual discourse to him, kindly do not have even the slightest dejection and do not feel sad. Reverend Sir ! You lecture him in a happy mood without any doubt in your mind. You explain to him the religious philosophy in a normal way."
Then Keshi Kumar Shraman Replied—“O Chitta ! I shall see to as and when the occasion arises."
Thereafter Chitta Saarthi bowed to Keshi Kumar Shraman, praised him and then came to the place where four-belled horse
- केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा
(299) Kesh Kumar Shraman and King Pradeshi
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