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________________ (१) जो आराम (बाग) में अथवा उद्यान में ठहरे हुए श्रमण या माहन के सन्मुख नहीं जाता है, मधुर वचनों से उनकी स्तुति नही करता है, मस्तक नवाकर उनको नमस्कार नही 2 करता है, सामने देखकर आसन से उठकर उनका सत्कार नहीं करता है, उनका सम्मान " नही करता है तथा कल्याणस्वरूप, मंगलस्वरूप, देवस्वरूप, विशिष्ट ज्ञानस्वरूप मानकर जो उनकी पर्युपासना नहीं करता है। जो अर्थ-जीवाजीवादि पदार्थों को, हेतुओं-(मुक्ति के * उपायों) को जानने की इच्छा से प्रश्नों को, कारणों (संसारबन्ध के कारणों) को, व्याख्याओं (तत्त्वों का पूर्ण ज्ञान करने के लिए उनके स्वरूप) को नहीं पूछता है, तो हे चित्त । वह जीव * केवलिप्ररूपित धर्म को सुन नहीं पाता है। (२) उपाश्रय मे स्थित श्रमण आदि का वन्दन, नमन, सत्कार, सम्मान आदि करने के निमित्त जो उनके सन्मुख नहीं जाता यावत् उनसे व्याकरण (तत्त्व का विवेचन) नहीं पूछता * तो इस कारण भी हे चित्त ! वह जीव केवलिभाषित धर्म को सुन नहीं पाता है। " (३) गोचरी-भिक्षा के लिए गॉव में आये हुए श्रमण, माहन का सत्कार आदि करने के निमित्त जो उनके समक्ष नही जाता यावत् उनकी पर्युपासना नहीं करता तथा उन्हें विपुल एषणीय अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य आहार से प्रतिलाभित नहीं करता (आहारदान नहीं Pal करता) एवं शास्त्र के अर्थ यावत् व्याख्या को उनसे नहीं पूछता, तो हे चित्त ! ऐसा जीव " भी केवली भगवान द्वारा प्ररूपित धर्म को सुन नहीं पाता है। (४) कहीं मार्ग में (अचानक) श्रमण या माहन का सुयोग मिल जाने पर भी वहाँ अपने आप को छिपाने के लिए अथवा ‘पहचाना न जाऊँ', इस विचार से हाथ से, वस्त्र से, छत्ते से स्वयं को आवृत्त कर लेता है, ढॉक लेता है एवं उनसे अर्थ आदि नही पूछता है, तो इस कारण से भी हे चित्त । वह जीव केवलिभाषित धर्मश्रवण करने का अवसर प्राप्त नहीं कर सकता है। ___हे चित्त ! उक्त चार कारणो से जीव केवलिभाषित धर्मश्रवण करने का लाभ नहीं ले पाता है।" REPLY OF KESHI KUMAR SHRAMAN 234. (a) After listening to the inner desire of Chitta Şaarthi, Keshi Kumar Shraman said___ “O Chitta ! Certainly a Jiva (living being) cannot get the benefits of listening to the philosophy propagated by the omniscient due to four reasons. They are as under--- (1) A person does not go to the Shraman or an ascetic staying in a garden or an orchard. He does not praise them with sweet words. * केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा (295) Keshu Kumar Shraman and King Pradeshi Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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