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________________ दंसणं कखंत जाव अभिलसंति, जस्स णं णामगोयस्स वि सवणयाए हट्ट जाव भवह, सेणं अयं केसी कुमारसमणे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे समोसढे जाव विहर | २३१. (केशीकुमार श्रमण के आगमन का समाचार सुनकर ) सेयविया नगरी के श्रृंगाटको आदि स्थानो पर लोगो मे परस्पर बातचीत होने लगी, लोगो के झुण्ड वदना करने निकले। तब वे उद्यानपालक भी केशीकुमार श्रमण के आगमन का सवाद सुनकर और समझकर हर्षित हृदय होते हुए जहाँ केशीकुमार श्रमण थे, वहाँ आये। आकर केशीकुमार श्रमण को वदना की, नमस्कार किया एवं यथाप्रतिरूप अवग्रह (स्थान पर ठहरने की अनुमति) प्रदान की । प्रातिहारिक पीठ, फलक, संस्तारक आदि ग्रहण करने के लिए प्रार्थना की। इसके बाद उन्होने (श्रमण का) नाम एवं गोत्र पूछा । चित्त सारथी की आज्ञा का स्मरण करते हुए एकान्त वे परस्पर एक-दूसरे से इस प्रकार बातचीत करने लगे 'देवानुप्रियो ! चित्त सारथी जिनके दर्शन की आकांक्षा करते हैं, जिनके दर्शन की प्रार्थना करते हैं, जिनके दर्शन की स्पृहा - चाहना करते हैं, जिनके दर्शन की अभिलाषा करते है, जिनका नाम, गोत्र सुनते ही हर्षित, सन्तुष्ट यावत् विकसित हृदय हो जाते हैं, ये वही केशीकुमार श्रमण अनुक्रम से विहार करते हुए, एक गाँव से दूसरे गाँव मे विहार करते हुए यहाँ आये हैं, यहाँ पधारे हैं तथा इसी 'सेयविया' नगरी के बाहर मृगवन उद्यान मे यथाप्रतिरूप अवग्रह ग्रहण करके विराजमान हुए हैं। अतएव हे देवानुप्रियो ! हम चलें और चित्त सारथी के इस प्रिय समाचार को ( केशीकुमार श्रमण के आगमन की सूचना ) उनसे निवेदन करे। हमारा यह निवेदन उन्हें बहुत ही प्रिय लगेगा।' उद्यानपालको ने एक-दूसरे से इस प्रकार विचार करके निश्चय किया । इसके बाद उद्यानपालक जहाँ सेयविया नगरी में चित्त सारथी का घर था, वहाँ आये । आकर दोनों हाथ जोड विनयपूर्वक चित्त सारथी को बधाया और इस प्रकार निवेदन किया"देवानुप्रिय ! आपको जिनके दर्शन की इच्छा है यावत् आप अभिलाषा करते हैं और जिनके नाम एव गोत्र को सुनकर आप हर्षित होते है, वे केशीकुमार श्रमण विचरते हुए यहाँ मृगवन उद्यान में पधार गये है, आकर वहाँ ठहरे है ।" 231. After hearing the news about the arrival of Keshu Kumar Shraman, the people at the triangular paths and other crossings and suchlike places started talking about it among themselves. They came out in large number to greet the saints and bow to them. केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा Jain Education International (289) Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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