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________________ him to accept the stool, board and other suchlike as required and inform me about his arrival.” The chowkidars and the gardeners felt happy at these orders. ** They folded their hands with a joyous mind and said—“Sir ! Your hoy orders are true. We accept them humbly." २२९. तए णं चित्ते सारही जेणेव सेयविया णगरी तेणेव उवागच्छइ, सेयवियं नगरि मज्झमझेणं अणुपविसइ, जेणेव पएसिस्स रण्णो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तुरए णिगिण्हइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, तं महत्थं जाव गेण्हइ, जेणे पएसी राया तेणेव उवागच्छइ, पएसिं रायं करयल जाव वद्धावेत्ता तं महत्थं जाव उवणेइ। ___ तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं जाव पडिच्छइ चित्तं सारहिं सक्कारेइ सम्माणेइ। ____तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रण्णा विसज्जिए समाणे हट्ट जाव हियए पएसिस्स रनो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटे * आसरहं दुरूहइ, सेयवियं नगरि मज्झमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, तुरए णिगिण्हइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ हाए जाव उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहि मुइंगमथएहिं बत्तीसइबद्धएहिं नाडएहिं वरतरुणीसंपउत्तेहिं उवणच्चिज्जमाणे 2 उवगाइज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इडे सद्द फरिसे जाव विहरइ।। ____२२९. तत्पश्चात् चित्त सारथी सेयविया नगरी में आया। सेयविया नगरी के मध्य भाग र में प्रविष्ट होकर जहाँ प्रदेशी राजा का भवन था, जहाँ भवन की बाह्य उपस्थानशाला थी, * वहाँ आया। घोड़ों को रोका, रथ को खड़ा किया, रथ से नीचे उतरा और उस महार्थक भेंट को साथ लेकर प्रदेशी राजा के सन्मुख पहुँचा। पहुँचकर दोनों हाथ जोडे; जय-विजय शब्दों से बधाया और प्रदेशी राजा के सामने उस महार्थक भेट को उपस्थित किया। इसके बाद प्रदेशी राजा ने चित्त सारथी से वह भेट स्वीकार की और सत्कार-सन्मान 3 करके चित्त सारथी को विदा किया। __ प्रदेशी राजा से विदा लेकर चित्त सारथी प्रसन्न हृदय हो वहाँ से निकला और जहाँ चार * घटों वाला अश्व-रथ था, वहाँ आया। अश्व-रथ पर आरूढ हुआ तथा सेयविया नगरी के बीचोंबीच से गुजरकर अपने घर आया। घर आकर घोड़ों को रोका, रथ को खडा किया Poskosskskskskskskskssalisekssskskskskskskske.skskskskskse.ke.ke.ske.ke.ske.ke.ke.ke.skar र रायपसेणियसूत्र (286) Rar-paseniya Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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