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________________ निग्गच्छइ। जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ, तं महत्थं जाव ठवइ, हाए जाव सरीरे सकोरंट. महया. पायचारविहारेण महया पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ते रायमग्ग मोगाढाओ आवासाओ निग्गच्छइ, सावत्थीनगरीए मझमज्झेणं निग्गच्छति, जेणेव कोहए चेइए जेणेव केसी कुमारसमणे तेणेव उवागच्छति। केसी कुमारसमणस्स अन्तिए धम्मं सोचा जाव एवं वयासी एवं खलु अहं भंते ! जियसत्तुणा रना पएसिस्स रन्नो इमं महत्थं जाव उवणेहि त्ति कटु विसज्जिए, तं गच्छामि णं अहं भंते ! सेयवियं नगरिं, पासादीया णं भंते ! सेयविया णगरी, एवं दरिसणिज्जा णं भंते ! सेयविया णगरी, अभिरूवा णं भंते ! सेयविया नगरी, पडिरूवा णं भंते ! सेयविया नगरी, समोसरह णं भंते ! तुब्भे सेयवियं नगरिं। २२४. जितशत्रु राजा द्वारा सम्मानपूर्वक विदा किये जाने पर चित्त सारथी ने उस महाप्रयोजन-साधक उपहार को ग्रहण किया। जितशत्रु राजा के पास से रवाना होकर श्रावस्ती नगरी के बीचोंबीच से निकला। निकलकर राजमार्ग पर स्थित अपने आवास पर आया और उस महार्थक उपहार को एक ओर रखा। फिर स्नान किया यावत् शरीर को विभूषित किया, कोरंट पुष्प की मालाओं से युक्त छत्र को धारण कर विशाल जनसमुदाय के साथ पैदल ही राजमार्ग स्थित आवासगृह से निकला और श्रावस्ती नगरी के बीचोबीच से चलता हुआ कोष्ठक चैत्य मे जहाँ केशीकुमार श्रमण विराजमान थे, वहाँ आया। वहाँ आकर केशीकुमार श्रमण से धर्म सुनकर वन्दना करके इस प्रकार निवेदन किया5 "भगवन् ! जितशत्रु राजा ने आज प्रदेशी राजा के लिए मुझे यह महार्थक उपहार देकर विदा किया है। अतएव भते ! मैं सेयविया नगरी लौट रहा हूँ। हे भते । सेयविया नगरी मन को आनन्द देने वाली है। दर्शनीय देखने योग्य है। मनोहर है। अतीव मनोहर है। अतएव ॐ हे भंते ! आप सेयविया नगरी में पधारने की कृपा करें।" REQUEST TO KESHI KUMAR SHRAMAN FOR VISITING SEYAVIYA 224. After the honourable farewell by king Jitshatru, Chitta Saarthi held the multi-purpose gift and passing through Shravasti town, he came to the rest-house on the highway where he was * staying. He kept the gift aside. Then he took his bath, upto decorated his body. He then having the great umbrella decorated with garlands of Korant flowers came out of the rest-house on foot along with a great collection of his men. He then passing through " केशीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा (279) Keshı Kumar Shraman and King Pradeshi Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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