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________________ निसट)। during the course of his wanderings has come here today. He has entered the town and is staying in Chaitya at the outskirts of Shravasti after seeking due permission following self-restraints of his conduct and the austerities." (ख) तं महप्फलं खलु भो देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं समणाणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंगपुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आयरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग ! विउलस्स अट्ठस्स ॐ गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं वंदामो णमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं विणएणं पज्जुवासामो (एयं णं इहभवे पेच्चभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ)। ___त्ति कटु परिसा निग्गया, केसी नामं कुमारसमणं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेति, वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पच्चासन्ने णाइदूरे सुस्सूसमाणे नमसमाणे 2) पंजलियउडे अभिमुहे विणएणं परिसा पज्जुवासइ। (ख) “हे देवानप्रियो ! जब तथारूप श्रमण भगवन्तों का नाम-गोत्र सुनने से ही महाफल प्राप्त होता है, तब उनके समीप जाने, उनकी वंदना करने, उनसे प्रश्न पूछने और उनकी पर्युपासना-सेवा करने से प्राप्त होने वाले अनुपम फल के विषय में तो कहना ही क्या है ? आर्य धर्म का एक सुवचन सुनने से जब महाफल प्राप्त होता है, तब विपुल अर्थों को 9 ग्रहण करने से प्राप्त होने वाले फल के विषय में तो कहना ही क्या है? * इसलिए हे देवानुप्रियो ! हम सब उनके पास चले, उनको वंदन-नमस्कार करें, उनका सत्कार करें, भक्तिपूर्वक सम्मान करें एव कल्याणरूप (कल्याणकारी), मंगलरूप (उनका दर्शन स्वयं ही मगल है), देवरूप (वे देव स्वरूप है), चैत्यरूप (स्वयं मूर्तिमंत ज्ञान) हैं। उनकी विनयपूर्वक पर्युपासना करें।" (इनका वदन-नमस्कार करना हमे इस भव तथा परभव में हितकारी है, सुखप्रद है, * क्षेम-कुशल एवं परम निःश्रेयस्-कल्याण का साधनरूप होगा। इसी प्रकार जन्म-जन्मान्तर * में भी सुख देने का निमित्त बनेगा।) ऐसा विचार कर परिषदा (जन-समुदाय) नगर से निकली और केशीकुमार श्रमण के पास पहुँचकर तीन बार प्रदक्षिणा की, प्रदक्षिणा करके वंदन-नमस्कार किया। रायपसेणियसूत्र (260) Rai-paseniya Sutra * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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