SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 276
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (ख) उस सेयविया नगरी के राजा का नाम प्रदेशी था । प्रदेशी राजा महाहिमवान्, मलय पर्वत, मन्दर एवं महेन्द्र पर्वत जैसा महान् ( अन्य राजाओं में प्रभावशाली ) था । वह प्रदेशी राजा अधार्मिक (धर्म - विरोधी), अधर्मिष्ठ (अधर्म - प्रेमी), अधर्माख्यायी (अधर्म का कथन और प्रचार करने वाला), अधर्मानुगामी (अधर्म का अनुसरण करने वाला), अधर्म-प्रलोकी (सर्वत्र अधर्म को ही देखने वाला), अधर्म - प्रजनक (विशेष रूप से अधार्मिक आचार-विचारों का जनक - प्रचार करने वाला - प्रजा को अधर्माचरण की ओर प्रवृत्त करने वाला), अधर्मशील समुदाचारी - अधर्ममय स्वभाव और आचार वाला अधर्म से ही आजीविका चलाने वाला था । वह सदैव 'मारो, छेदन करो, भेदन करो' इस प्रकार की आज्ञा देता रहता था । उसके हाथ सदा खून से सने रहते थे । जैसे- साक्षात् पाप का अवतार था । प्रकृति से प्रचण्ड- - क्रोधी, रौद्र - भयानक और क्षुद्र - अधम था । वह साहसिक (बिना विचारे प्रवृत्ति करने वाला ) था । उत्कंचन- धूर्त्त, बदमाशों और ठगों को प्रोत्साहन देने वाला, उकसाने वाला था । लांच - रिश्वत लेने वाला, वंचक-दूसरों को ठगने वाला, धोखा देने वाला, मायावी, कपटी - बकवृत्ति वाला, कूट - कपट करने मे चतुर और अनेक प्रकार के झगडा - फिसाद रचकर दूसरों को दुःख देने वाला था। निःशील-शीलरहित था । निर्व्रत - हिसा, झूठ आदि पापों में लगा रहता था, क्षमा आदि गुणों से रहित निर्गुण था, परस्त्रीवर्जन आदि रूप मर्यादा से रहित था, कभी भी उसके मन में प्रत्याख्यान, पौषध, उपवास आदि करने का विचार नहीं आता था । अनेक द्विपद- मनुष्यादि, चतुष्पद - मृग, पशु, पक्षी, सरीसृप - सर्प आदि की हत्या करने, उन्हें मारने, प्राणरहित करने, विनाश करने मे साक्षात् अधर्म की ध्वजा जैसा था, अथवा अधर्मरूपी केतुग्रह था । गुरुजनों - माता-पिता आदि को देखकर भी उनका आदर करने के लिए आसन से खड़ा नही होता था, उनका विनय नहीं करता था और प्रजाजनों से राज - कर लेकर भी उनका सम्यक् प्रकार से पालन और रक्षण नहीं करता था । KING PRADESHI (b) King Pradeshi was the ruler of Seyaviya town. He was very great like Maha-himvaan mountain, Malaya mountain, Mandar mountain and Mahendra mountain (He was very influential among other kings). That king Pradeshi was irreligious, highly sinful, was preaching sin, was following sinful ways, was always preferring sin to piety, was propagating heretical creed amongst people, was of sinful nature and conduct. He was making his living by sinful activities. शीकुमार श्रमण और प्रदेशी राजा Jain Education International (239) Keshi Kumar Shraman and King Pradeshi For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy