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________________ पडिपुण्णालंकारे सीहासणाओ अभुटेति, अन्भुट्टित्ता अलंकारियसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छति, ववसायसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसति जेणेव सीहासणवरगए जाव सनिसन्ने। १९६. (क) तत्पश्चात् वह सूर्याभदेव केशालंकारों (केशों को सजाने वाले अलंकार), पुष्प-मालादि माल्यालंकारों, हार आदि आभूषणालंकारों एवं देवदूष्यादि वस्त्रालकारो-इन चारों प्रकार के अलकारो से विभूषित होकर सिंहासन से उठा। उठकर अलकार सभा के पूर्व दिग्वर्ती द्वार से बाहर निकला। व्यवसाय सभा में आया एव बारम्बार व्यवसाय सभा की प्रदक्षिणा करके पूर्व दिशा के द्वार से उसमें प्रवेश किया। प्रवेश कर जहाँ सिंहासन था वहाँ आकर सिहासन पर आसीन हुआ। ARRIVAL OF SURYABH DEV IN VYAVASAYA SABHA 196. (a) Thereafter, Suryabh Dev got up from his throne after beautifying himself with four types of decorative material namely the hair decoration, the flower garlands, other garlands ornaments and heavenly clothes. He then came out from the gate in the east. He then came to the library, went round and entered it from the door in the east. Thereafter he came to his assigned seat and sat there. पुस्तकरत्न वाचन (ख) तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववनगा देवा पोत्थयरयणं उणवेंति, तए णं से सूरियाभे देवे पोत्थयरयणं गिण्हति, गिण्हित्ता पोत्थयरयणं मुयइ, मुइत्ता पोत्थयरयणं विहाडेइ, विहाडित्ता पोत्थयरयणं वाएति, पोत्थयरयणं वाएत्ता धम्मियं ववसायं ववसइ, ववसइत्ता पोत्थयरयणं पडिनिक्खवइ, सीहासणाओ अभुटेत्ति, अभुढेत्ता ववसायसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं पडिनिक्खमित्ता जेणेव नंदापुक्खरिणी तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता गंदापुक्खरिणिं पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता हत्थपादं पक्खालेति, पक्खालित्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए एगं महं सेयं रययामयं विमलं सलिलपुण्णं मत्तगयमुहागितिकुंभसमाणं भिगारं पगेण्हित्ता जाई तत्थ उप्पलाइं जाव सतसहस्सपत्ताई ताई गेण्हति गेण्हित्ता गंदाओ पुक्खरिणीओ पच्चुत्तरिति, पच्चुत्तरित्ता जेणेव सिद्धायतणे तेणेव पहारेत्थ गमणाए। * * रायपसेणियसूत्र (208) Rar-pasenaya Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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