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प्रसाधन और परिधान
१९५. (क) तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववन्नगा अलंकारियभंडे उवट्ठवेंति। __तए णं से सूरियाभे देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाई
लूहेति, लूहित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं गायाइं अणुलिंपति, अणुलिंपित्ता नासानीसासवायवोझं चक्खुहरं वन्नफरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलं कणगखचियन्तकम्म आगासफालियसमप्पभं दिव्वं देवदूसजुयलं नियंसेति।
१९५. (क) तदनन्तर उस सूर्याभदेव की सामानिक परिषद् के देवों ने उसके सामने अलकार-भांड (शृगार प्रसाधनों की मंजूषा) उपस्थित किया। ___ इसके बाद सूर्याभदेव ने सर्वप्रथम रोमयुक्त, सुकोमल, काषायिक, सुरभिगंध से सुवासित 9 वस्त्र (गेरुआ रंग का सुगंधित अंगोछा) से शरीर को पोंछा। पोंछकर शरीर पर सरस गोशीर्ष
चंदन का लेप किया, फिर नाक की निःश्वास से भी उड़ने वाली पतली, दीखने में आकर्षक, सुन्दर वर्ण और स्पर्श वाले घोड़े की लार से भी अधिक कोमल, धवल, आकाश एवं स्फटिक मणि जैसी प्रभा वाले दिव्य देवदूष्य (वस्त्र) युगल को धारण किया। उनके पल्लों और किनारों पर सुनहरे बेलबूटे बने हुए थे। ORNAMENTS AND DRESS ____195. (a) Thereafter, the gods of Saamanik council, placed the box of ornaments before Suryabh Dev.
Then first Suryabh Dev wiped his body with porous, soft, fragrant, red colour towel. He then put sandal paste of go-sheersh sandal wood on his body. Then he wore heavenly clothes which were so fine that it could move away even with human breathing, which is was very attractive to look at, which was of beautiful colour and touch which was more soft and white than saliva of a horse, which was emitting brightness like sky and crystalline gem. It was embroidered in gold at margins and upper body covering. आभूषण धारण
(ख) नियंसेत्ता हारं पिणद्धेति, पिणद्धित्ता अद्वहारं पिणद्धेइ, एगावलिं पिणद्धेति, पिणद्धित्ता मुत्तावलिं पिणद्वेइ, पिणद्धित्ता रयणावलिं पिणद्वेइ, पिणद्धित्ता एवं अंगयाई
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र रायपसेणियसूत्र
(206)
Rar-paseniya Sutra
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