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________________ They then came to Nishadh and Neel Varshdhar mountains, to Tiginchh and Kesari lakes and took water and other suchlike from all these places. (५) जेणेव महाविदेह वासे जेणेव सीता - सीतोदाओ महाणदीओ तेणेव तहेव । जेणेव सव्वचक्कवट्टिविजया जेणेव सव्वमागह- वरदाम- पभासाइं तित्थाई तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता तित्थोदगं गेहंति, गेण्हित्ता सव्वंतरणईओ जेणेव सव्ववक्खारपव्वया तेणेव उवागच्छंति, सव्वतूयरे तहेव । जेणेव मंदरे पव्वए जेणेव भद्दसालवणे तेणेव उवागच्छंति सव्वतयरे सव्वपुप्फे सव्वमल्ले सव्वसहिसिद्धत्थर य ण्हंति, गेण्हित्ता जेणेव नंदणवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसगोसीसचंदणं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव सोमणसवणे तेणेव उवागच्छंति सव्वतूयरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए य सरसगोसीसचंदणं च दिव्यं च सुमणदामं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पंडगवणे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सव्वतूयरे जाव सव्वोसहिसिद्धत्थए च सरसं च गोसीसचंदणं च दिव्वं च सुमणदामं दद्दरमलयसुगंधियगंधे गिण्हंति । (५) तत्पश्चात् जहाँ महाविदेह क्षेत्र था जहाँ सीता, सीतोदा महानदियाँ थीं वहाँ आये और उसी प्रकार से उनका जल, मिट्टी, पुष्प आदि लिये । फिर जहाँ सभी चक्रवर्तियो के विजय स्तम्भ थे, जहाँ मागध, वरदाम और प्रभास आदि तीर्थ थे, वहाँ आये। वहाँ आकर तीर्थो का जल लिया और तीर्थ जल लेकर सभी अन्तरवर्ती नदियों की जल एव मिट्टी ली। फिर वक्षस्कार पर्वत पर आये और वहाँ से सर्व ऋतुओं के पुष्पों आदि का चयन किया। तत्पश्चात् मन्दर (सुमेरु) पर्वत के ऊपर भद्रशालवन मे आये, वहाँ आकर सर्व ऋतुओं के पुष्पों, समस्त औषधियों और सिद्धार्थको को लिया । वहाँ से नन्दनवन मे आये, आकर सर्व ऋतुओं के पुष्पों यावत् सर्व औषधियों, सिद्धार्थकों (सरसो) और सरस गोशीर्ष चन्दन को लिया । फिर जहाँ सौमनसवन था, वहाँ आये। वहॉ से सर्व ऋतुओं के पुष्पों यावत् सर्व औषधियों, सिद्धार्थकों, सरस गोशीर्ष चन्दन और दिव्य पुष्पमालाओं को लिया । तत्पश्चात् पांडुकवन मे आये और वहाँ आकर सर्व ऋतुओ के पुष्पों यावत् सर्व औषधियों, सिद्धार्थकों, सरस गोशीर्ष चन्दन, दिव्य पुष्पमालाओं, दर्दरमलय चन्दन की सुरभिगध से सुगन्धित गध- द्रव्यो को लिया। रायपसेणियसूत्र Jain Education International (192) For Private Personal Use Only Rai-paseniya Sutra www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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