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________________ १७८. तस्स णं सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महेगा मणिपेढिया * पण्णत्ता-सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाई बाहल्लेणं। तीसे गं मणिपेढियाए उवरि एत्थ णं महेगे देवच्छंदए पण्णत्ते सोलस जोयणाई आयामविक्खंभेणं, साइरेगाइं सोलस जोयणाई उड्टुं उच्चत्तेणं, सबरयणामए जाव पडिरूवे। एत्थ णं अट्ठसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सेहप्पमाणमित्ताणं संनिक्खित्तं संचिट्ठति। ___ तासि णं जिणपडिमाणं इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा तवणिजमया हत्थतलपायतला, अंकामयाइं नक्खाइं अंतोलोहियक्खपडिसेगाई, कणगामईओ जंघाओ, कणगामया जाणू, कणगामया उरू, कणगामईओ गायलट्ठीओ, तवणिजमयाओ नाभीओ, रिट्ठामईओ रोमराईओ, तवणिजमया चुचुया, तवणिजमया * सिरिवच्छा, सिलप्पवालमया ओट्ठा, फालियामया दंता, तवणिजमईओ जीहाओ, तवणिजमया तालुया, कणगामईओ नासिगाओ अंतोलोहियक्खपडिसेगाओ, अंकामयाणि * अच्छीणि अंतोलोहियक्खपडिसेगाणि, रिट्ठामईओ ताराओ रिट्ठामयाणि अच्छिपत्ताणि, ॐ रिट्ठामईओ भमुहाओ, कणगामया कवोला, कणगामया सवणा, कणगामईओ णिडालपट्टियाओ, वइरामईओ सीसघडीओ, तवणिजमईओ केसंतकेसभूमीओ, रिट्ठामया * उवरि मुद्धया। १७८. उस सिद्धायतन के ठीक मध्य मे सोलह योजन लम्बी-चौडी, आठ योजन मोटी एक विशाल मणिपीठिका बनी है। उस मणिपीठिका के ऊपर सोलह योजन लम्बा-चौडा और कुछ अधिक सोलह योजन ऊँचा मणियो से बना हुआ एक विशाल देवच्छन्दक स्थापित है और उस पर जिन-शरीर प्रमाण पर तीर्थंकरो की ऊँचाई के बराबर वाली एक सौ आठ जिन-प्रतिमाएँ विराजमान है। " उन जिन-प्रतिमाओं का वर्णन इस प्रकार है, जैसे कि उन प्रतिमाओं की हथेलियाँ और पगलियाँ तपनीय (तपे हुए) स्वर्ण की है। मध्य में खचित लोहिताक्ष रत्न से युक्त अंक रत्न के नख (श्वेत मे लाल आभा वाले) है। जंघाएँ, जानुएँ, घुटने, पिंडलियाँ और देहलता-शरीर कनकमय हैं। नाभियाँ तपनीय (स्वर्ण-लाल आभा) मय हैं। रोमराजि रिष्ट रत्नमय (कृष्ण आभा वाली) हैं। चूचक (स्तन का अग्र भाग) और श्रीवत्स (वक्षस्थल पर बना हुआ चिह्न-विशेष) तपनीयमय हैं। होठ प्रवाल (मूंगा) के के बने हुए हैं, दंत-पंक्ति स्फटिक मणियों और जिह्वा एवं तालु तपनीय स्वर्ण (लालिमायुक्त रायपसेणियसूत्र (172) Rai-paseniya Sutra * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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