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________________ १२४. उन नागदन्तों पर बहुत से काले सूत से गुँथी हुई तथा इसी प्रकार नीले, लाल, पीले और सफेद डोरे से गुँथी हुई लम्बी-लम्बी मालाएँ लटक रही | वे मालाएँ सोने के झुमकों और सोने के पत्तों से परिमंडित तथा नाना प्रकार के मणि-रत्नों से रचित विविध प्रकार के शोभनीक हारों - अर्धहारों के समुदय से अपनी श्रीशोभा से अतीव - अतीव उपशोभित हैं। 124. Many long garlands knitted with black, blue, red, yellow ard white thread are hanging from the pegs. Those garlands are studded with golden rings and golden leaves. The pegs are shining due to gems and jewels-studded garlands and semi-circular garlands and rosaries hanging from them adding to their beauty. १२५. तेसि णं णागदंताणां उवरि अन्नाओ सोलस- सोलस नागदंतपरिवाडीओ पन्नत्ता, ते णं णागदंता तं चैव जाव गयदंतसमाणा पन्नत्ता समाणाउसो । तेसु णं णागदंतसु बहवे रययामया सिक्कगा पन्नत्ता, तेसु णं रययामएसु सिक्कएसु बहवे वेरुलियामईओ धूवघडीओ पण्णत्ताओ। ताओ णं धूवघडीओ कालागुरु- पवरकुंदरुक्क तुरुक्क धूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामाओ सुगंधवरगंधियाओ गंधवट्टिभूयाओ ओरालेणं मणुण्णेणं मणहरेणं घाणमण - णिव्वुइकरेणं गंधेणं ते पदेसे सव्यओ समंता आपूरेमाणा आपूरेमाणा जाव चिट्ठति । हे १२५. इन नागदंतों के भी ऊपर अन्य दूसरी सोलह - सोलह नागदन्तों की पंक्तियाँ हैं । आयुष्मन् श्रमणो ! पूर्व वर्णित नागदंतों की तरह ये नागदंत भी रमणीय विशाल गजदंतों के समान हैं। इन नागदन्तों पर बहुत से रजतमय शींके ( छींके) लटके हैं। इन प्रत्येक रजतमय शींको में वैडूर्यमणियों से बनी हुई धूप घटिकाऍ (धूपदानियाँ) रखी हैं। ये धूपघटिकाएँ काले अगर, श्रेष्ठ कुन्दरुष्क, तुरुष्क (लोभान) और सुगंधित धूप के जलने से उत्पन्न मघमघाती मनमोहक सुगन्ध के उडने एवं उत्तम सुरभिगंध की अधिकता से गंधवर्तिका (अगरबत्ती) के जैसी प्रतीत होती हैं तथा सर्वोत्तम, मनोज्ञ, मनोहर गंध से नासिका और मन को तृप्ति देती हुई उस प्रदेश को सब तरफ से सुवासित कर रही हैं। 125. Above those pege there are rows of sixteen - sixteen pegs each. These pegs are also shining like pegs described earlier and are looking like huge tusks. रायपसेणियसूत्र Jain Education International (112) For Private Personal Use Only Rai-paseniya Sutra www.jainelibrary.org
SR No.007653
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Tarunmuni, Shreechand Surana, Trilok Sharma
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2002
Total Pages499
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_rajprashniya
File Size18 MB
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