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११८. (भगवान ने उत्तर दिया) “हे गौतम ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर (सुमेरु) पर्वत से दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के रमणीय समतल भूभाग से ऊपर, ऊर्ध्व दिशा में चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण नक्षत्र और तारामण्डल से आगे बहुत ऊँचाई में, बहुत से सैकडों योजनों, हजारों योजनों, लाखों, करोडों योजनों और सैकड़ों करोड, हजारो करोड़, लाखों करोड योजनों, करोडों करोड़ योजनों को पार करने के बाद सौधर्मकल्प नाम
का कल्प है अर्थात् सौधर्म नामक स्वर्गलोक है। की वह सौधर्मकल्प पूर्व-पश्चिम दिशा में लम्बा और उत्तर-दक्षिण दिशा में विस्तृत-चौडा
है। अर्धचन्द्र के समान उसका आकार है। सूर्य किरणों की तरह अपनी द्युति-कान्ति से सदैव
चमचमाता रहता है। असंख्यात कोटाकोटि योजन प्रमाण उसकी लम्बाई-चौडाई तथा ॐ असंख्यात कोटाकोटि योजन प्रमाण उसकी परिधि है। यहाँ सौधर्म देवों के बत्तीस लाख ॐ विमान बताये हैं। वे सभी विमान सम्पूर्ण रूप में रत्नों से बने हुए स्फटिक मणि की भॉति ॐ स्वच्छ यावत् अतीव मनोहर हैं।
उन विमानों के मध्य भाग में-ठीक बीचोंबीच-पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर इन चार दिशाओं मे अनुक्रम से (१) अशोक-अवतसक, (२) सप्तपर्ण-अवतंसक, (३) चंपक-अवतंसक, (४) आम्र-अवतसक, तथा (५) मध्य में सौधर्म-अवतंसक, ये पाँच
अवतंसक (श्रेष्ठ भवन) बने हुए हैं। ये पाँचों अवतंसक भी रत्नों से निर्मित, निर्मल यावत् - प्रतिरूप-अतीव मनोहर हैं।
उस सौधर्म-अवतंसक महाविमान की पूर्व दिशा में तिरछी दिशा में असंख्यात लाख योजन आगे जाने पर सूर्याभदेव का सूर्याभ नामक विमान है। उसका आयाम विष्कभ (लम्बाई-चौडाई) साढे बारह लाख योजन और परिधि उनतालीस लाख बावन हजार आठ सौ अडतालीस योजन की है।" ।
118. (Bhagavan replied) “O Gautam ! In the southern direction of Sumeru Mountain of this Jambu Dveep, at a high altitude from the 9 roof of this Ratnaprabha earth, there are moon, sun, planets and
stars. Further higher and higher hundreds. thousands. millions. trillions, hundred trillions, thousand trillions, million trillions, trillion trillions yojans higher is Saudharm Devlok.
This Saudharm Devlok is very spacious and is very long in eastwest direction and very wide in north-south direction. Its shape is that of semi-circle. It always remains shining due to brightness of its ownself like rays of the sun. Its length and breadth is रायपसेणियसूत्र
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Rai-paseniya Sutra
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